*हौंसले की ऊड़ान*
चलो फिर नई उड़ान भरते हैं
आसमां को नई ऊॅंचाई देते हैं
माना हवाएं विपरित ही सही
चलो हवाओं को तौल लेते हैं
जानते हैं मंजिल है बहुत दूर
चलो हौंसले के साथ दौड़ लेते हैं
मुश्किल है डगर अकेला है सफर
चलो हवाओं को ही साथ लेते हैं।
डा. नीलम
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें