जयप्रकाश अग्रवाल

*गीता महिमा*

गीता तो श्री हरि मन्तव्य, गीता तो तत्वों का तत्व ।
शान्त-सुखी जीवन शैली यह, दृश्य-दृष्टि, यह हरि दृष्टव्य ।

मोक्ष प्राप्ति और आत्मोद्धार, वेद-वेदान्तों का यह सार ।
सत्य-संजीवनी, सर्वौषधि, कलियुग का यह कृष्णोपचार ।

प्रभु दर्शन देने में सक्षम, ज्योति जलाये मिटाये तम ।
योगेश्वर से योग कराये, सत्य-सनातन-शाश्वत संगम ।

मिटाये मोह-काम और क्रोध, कराती निज धर्म-कर्म का बोध ।
भय-अशान्ति-दुविधा विनाशिनी, निर्मल करती जीवन को शोध ।

सिखाये संयम, मिटाये अहम, यह लोभ-लालसा करती कम ।
लक्ष्य दिखाती-राह बताती, संतोष जगाती- करती सम ।

है गीता देती मन्त्र समर्पण, सब कुछ कर दे हरि परायण।
श्रद्धा-भक्ति-प्रेम से करती, अद्भुत हरि का अद्भुत वर्णन ।

हो गीता के जो शरणापन्न, उससे ही हरि रहते प्रसन्न ।
रक्षा करते-पीड़ा हरते, दौड़े आते - हरि आसन्न ।

जहाँ गीता, वहाँ हरि वास, गंगा बन करती पाप नाश ।
गीता हरि का शब्द रूप है, गीता देती परम प्रकाश ।


जयप्रकाश अग्रवाल 
काठमांडू, नेपाल ।

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