विनय साग़र जायसवाल,

गीत--श्रमिक दिवस पर

तुम वर्तमान के पृष्ठों पर ,पढ़ लो जीवन का समाचार ।
क्या पता कौन से द्वारे से ,आ जाये घर में अंधकार।।
🌹
आशा की किरणें लौट गयीं ,बैठी हैं रूठी इच्छायें
प्रात: से आकर पसर गईं ,आँगन में कितनी संध्यायें
इन हानि लाभ की ऋतुओं में, तुम रहो सदा ही होशियार ।।
तुम वर्तमान-----
🍁
चल पड़ो श्रमिक की भाँति यहाँ, छेड़ो  जीवन का महासमर
अवसान हताशा का कर दो ,सुरभित हों मरुथल गाँव नगर
श्रमदेवी कर में भेंट लिये ,आयेगी करने चमत्कार ।।
तुम वर्तमान--------
🌷
प्राची ने शंख बजाया तो ,कर्तव्यों का दिनमान चला
फिर कलश उठाये हाथों में ,जीवन क्रम का अभियान चला
हर गली मोड़ चौराहों पर ,खुल गया दिवस से विजय-द्वार ।।
तुम वर्तमान-----
🌺
स्वागत हो हर श्रमजीवी का ,हर तन को भी परिधान मिले
शिशुओं के आभा-मंडल पर, सुंदर-सुंदर मुस्कान खिले
छँट जाये छाया तिमिर घना ,मिट जाये जग से अनाचार ।।
तुम वर्तमान------
🌱
हर ओर शाँति के दीप जलें , सदभाव फले हर उपवन में
*साग़र* न भयानक रूप दिखे , अपना ही अपने दर्पन में
मानवता के जलजात खिलें ,हो धूल धूसरित अहंकार ।।
तुम वर्तमान-–-----

🖋विनय साग़र जायसवाल,
बरेली


ग़ज़ल

वो फिर फोन अपना घुमाने लगे हैं
ग़ज़ल मेरी मुझको सुनाने लगे हैं

ज़माना हुआ हमसे रूठे हुए थे
हुआ क्या कि नर्मी दिखाने लगे हैं

कभी हमने उन पर जो ग़ज़लें कहीं थीं 
हमें याद वो अब दिलाने लगे हैं

जुदाई के लम्हात हैं जान लेवा
ये सब राज़ हमको बताने लगे हैं

गज़ब ढाती भेजी हैं तस्वीरें अपनी
अदाओं से अपनी रिझाने लगे हैं

जगा दी हमारी भी सोई मुहब्बत
कि अब उस तरफ़ हम भी जाने लगे 

हमें बेवफ़ा मत कहो आप *साग़र*
परेशानी अपनी गिनाने लगे हैं

🖋️विनय साग़र जायसवाल ,बरेली
22/4/2021

कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...