*शीर्षक:-कोई सीखे नारी से*
अपने अरमां दबाना
पर आँगन महकाना
हिय मे दुःख दफनाना
दर्द में भी मुस्कुराना
कोई नारी से सीखे......
होती ये दो घर का गहना
नारी ही होती माँ-बहना
अंदर ही सबकुछ सहना
किसी से कुछ ना कहना
कोई नारी से सीखे.....
दो कुल की लाज रखना
अपना पराया न परखना
फर्ज से कभी दूर न हटना
फूँक-फूँक कर कदम रखना
कोई सीखे नारी से.....
हमेशा ही रखना संतोष
न दिखाना कभी आक्रोश
बनाएं रखना पास-पड़ोस
अक्सर ही रहना खामोश
कोई सीखे नारी से.....
पिता का घर छोड़ना
पति से नाता जोड़ना
कुमोद कहे ये समझना
पिता का मान ऊँचा रखना
कोई सीखे नारी से.....
कोमल पूर्बिया "कुमोद"
सलूम्बर,उदयपुर(राज.)
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