मनोदशा
क़हर ढाहे कोरोना, अच्छा नहीं लगता ।
कि अपनों को यों खोना, अच्छा नहीं लगता ।
मुँह पर मास्क, समाजिक दूरी डराये,
हाथ बार बार धोना, अच्छा नहीं लगता ।
दिलो दिमाग़ को गिराना, ख़बरें सुन सुन कर,
मायूसी में डुबोना, अच्छा नहीं लगता ।
बेचारा हो गया, बहुत लाचार हो गया,
खुद का इंसान होना, अच्छा नहीं लगता ।
महीनों गुजर गये दोस्तों से मिले बिना,
आकर अब तो मिलोना, अच्छा नहीं लगता ।
ना बाहर कुछ खाया, ना ही घूमने गये,
मन करे आज-चलोना, अच्छा नहीं लगता ।
दया करो, बहुत हुआ, छोड़ो अब तो पीछा,
कुदरती जादू टोना, अच्छा नहीं लगता ।
जयप्रकाश अग्रवाल
काठमांडू
नेपाल
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