डॉ0 हरि नाथ मिश्र

दसवाँ-4
  *दसवाँ अध्याय*(श्रीकृष्णचरितबखान)-4
अस कहि नारद कीन्ह पयाना।
नर नारायन आश्रम जाना ।।
     नलकूबर-मणिग्रीवहिं भ्राता।
     अर्जुन बृच्छ तुरत संजाता।।
तरु यमलार्जुन पाइ प्रसिद्धी।
जोहत रहे कृष्न छुइ सुद्धी।।
    नारद रहे किसुन कै भक्ता।
    निसि-बासर किसुनहिं अनुरक्ता।।
जानि क अस किसुनहिं लइ ऊखल।
खींचत गए जहाँ रह ऊगल ।।
     यमलार्जुन बिटपहिं नियराई।
     नलकूबर-मणिग्रीवहिं भाई।।
निज भगतहिं बर साँचहिं हेतू।
बिटप-मध्य गे कृपा-निकेतू।।
      रसरी सहित गए वहि पारा।
       अटका ऊखल बृच्छ-मँझारा।।
रज्जु तानि प्रभु खींचन लागे।
उखरि गिरे तरु मही सुभागे।।
     जोर तनिक जब लागा प्रभु कै।
     जुगल बिटप भुइँ गिरे उखरि कै।।
प्रगटे तहँ तब दूइ सुजाना।
तेजस्वी जनु अगिनि समाना।।
दोहा-दिग-दिगंत आभा बढ़ी,प्रगट होत दुइ भ्रात।
        करन लगे स्तुति दोऊ,परम भगत निष्णात।।
                  डॉ0हरि नाथ मिश्र
                   9919446372

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