*गीत*(कोरोना 16/14)
नहीं विश्व का कोई कोना,
जहाँ न पहुँचा कोरोना।
मनुज-प्राण का शत्रु भयंकर-
मचा दिया रोना-धोना।।
धरती काँपे थर-थर,थर-थर,
कहर बहुत यह बरपाता।
जिसपे करे आक्रमण शातिर,
उसे बहुत ही तड़पाता।
कर प्रवेश सीधे सीने में-
कहे चलो अब है सोना।।
मचा दिया रोना-धोना।।
पति-पत्नी का साथ छूटता,
पिता-पुत्र बिलगाव करे।
भ्रात-बहन-संबंध अलग कर,
माँ-सुत मध्य दुराव करे।
नहीं पड़ोसी भी सह पाता-
शीघ्र पड़ोसी का खोना।।
मचा दिया रोना-धोना।।
जगह नहीं है श्मशान में,
क्रिया-कर्म होना दूभर।
अस्पताल भी भरे पड़े हैं,
है अभाव औषधि ऊपर।
जन से जन संपर्क नहीं है-
लुटा दिखे कोना-कोना।।
मचा दिया रोना-धोना।।
करें यत्न इससे बचने की,
छद्म रूप यह धारे है।
सेंध लगाकर कब घुस जाए?
घातक पाँव पसारे है।
स्वयं-नियंत्रण-नियमन से ही-
अंत रोग का है होना।।
मचा दिया रोना-धोना।।
प्रेम-भाव को मन में रखकर,
बच-बच कर ही रहना है।
जब भी बाहर निकले कोई,
दो गज दूरी रखना है।
रखकर साहस मन में मित्रों-
बुरे हाल को है ढोना।।
मनुज-प्राण का शत्रु भयंकर-
मचा दिया रोना-धोना।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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