डॉ0 हरि नाथ मिश्र

*गीतिका*(आँखें)
देखें सदा सुंदर मंज़र,ये आँखें,
नहीं देख पातीं भयंकर,ये आँखें।।

विमल व्योम में बिखरी आभा से मंडित,
प्यारा सा देखें सुधाकर,ये आँखें।।

पर्वत से झर-झर उतरते जो झरने,
निहारें बना उन्हें दिलवर,ये आँखें।।

गोरी को देखें बिना रोके-टोके,
सदा दिव्य देवी बनाकर,ये आँखें।।

दीवानगी इनकी समझ में न आती,
 उठातीं कभी तो गिराकर, ये आँखें।।

धोती सदा दागे-नफ़रत को रहतीं,
सहज प्रेम-आँसू बहाकर, ये आँखें।।
           ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                9919446372

कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...