गंगा दोहा-चौपाई मिश्रित प्रयास(अवधी में)
गंगा माँ
अहहि गंग-जल परम पुनीता।
भगत पान करि भवहिं अभीता।।
करि स्नान ध्यान करि गंगा।
नर जावहिं भव-पार उमंगा।।
दोहा-गंगा-जल अमरित अहहि, तन-मन करै निरोग।
करि नहान यहि नीर मा, पायँ मुक्ति सब लोग।।
सगर आदि तरिगे छुइ सलिला।
कबहुँ न नीर गंग मट मइला ।।
सुरसरि अहहि अभूषन संकर।
हरहि तुरत भव-कष्ट भयंकर।।
दोहा-संकर-सिर-सोभा इहै,करैं इहै कल्यान।
सकल तीर्थ इन मा बसै,सुभकर होय नहान।।
ऋषीकेस-कासी-हरिद्वारा।
बहहि गंग हरि ताप अपारा।।
संगम-गंग-जमुन-स्थाना।
तरहिं लोंग जा करि स्नाना।।
दोहा-गंग-जमुन-संगम सुखद,तीरथराज प्रयाग।
कुंभपर्व- महिमा प्रबल,सब हिय रह अनुराग।।
सत-सत नमन करउँ कर जोरी।
सुरसरि मातु गंग मैं तोरी।।
दोहा- अमरित-औषधि गंग-जल,करै जगत-कल्यान।
धन्य भूमि भारत इहै ,जासु गंग सम्मान ।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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