डॉ0 हरि नाथ मिश्र

*स्वाभिमान*(दोहे)
स्वाभिमान अभिमान में,अंतर केवल एक।
स्वाभिमान रक्षक-कवच,अभि दे कष्ट अनेक।।

स्वाभिमान व्यक्तित्व में,लाता सदा निखार।
यह आभूषण मनुज का,पा हो हर्ष अपार।।

अभिमानी रावण मरा, मिटा कंस-संसार।
स्वाभिमान से पांडु-सुत,रखे लाज परिवार।।

यह रक्षक अस्तित्व का,करे अमर यह नाम।
सदा बढ़ाकर आत्मबल,करता बिगड़ा काम।।

स्वाभिमान मत त्यागिए, है यह जीवन-कोष।
अमिट स्रोत बस है यही,शांति-सकल सुख-तोष।।
             ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                  9919446372

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