तेरहवाँ-1
*तेरहवाँ अध्याय*(श्रीकृष्णचरितबखान)-1
बड़ भागी तुम्ह अहउ परिच्छित।
अस कह मुनि सुकदेव सुसिक्षित।।
जदपि कि तुम्ह जानउ प्रभु-लीला।
पुनि-पुनि पुछि यहिं करउ रसीला।।
रसिक संत-रसना अरु काना।
कथन-श्रवन प्रभु-चरित सुहाना।।
अहइँ जगत मा सुनहु परिच्छित।
प्रभु-बखान जग रखै सुरच्छित।।
नारि-बखानइ लंपट भावै।
सुनि प्रभु-चरित संत सुख पावै।।
रहसि भरी लीला भगवाना।
संत-मुनी-ऋषिजन जे जाना।।
कहहिं सबहिं मिलि कथा सुहाई।
सुनहिं रसिक जन मन-चित लाई।।
मारि क अघासुरहिं भगवाना।
रच्छा कीन्ह गोप-बछ-प्राना।।
लाइ सभें जमुना के तीरे।
कहहिं किसुन मुसकाइ क धीरे।।
सकल समग्री अहहीं इहवाँ।
खेलन हेतु हमहिं जे चहवाँ।।
स्वच्छ-नरम सिकता ई बालू।
जमुन-तीर सभ रहहु निहालू।।
भौंरा-गुंजन अति मन-भावन।
खिले कमल सभ लगहिं सुहावन।।
पंछी-कलरव मधुर-सुहाना।
तरु-सिख बैठि सुनावहिं गाना।।
करउ सबहिं मिलि भोजन अबहीं।
भूखि-पियासिहिं तड़पैं सबहीं।।
चरहिं घास सभ बछरू धाई।
जल पीवहिं सभ इहवाँ आई।।
दोहा-सुनत बचन अस किसुन कै, ग्वाल-बाल सभ धाहिं।
बछरुन्ह जलहिं पियाइ के,बैठि किसुन सँग खाहिं।।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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