डॉ0 हरि नाथ मिश्र

बारहवाँ-6
  *बारहवाँ अध्याय*(श्रीकृष्णचरितबखान)-6
आत्मानंदहिं प्रकट स्वरूपा।
कहैं बेद अस प्रभू अनूपा।।
     निकट न आवै कबहूँ माया।
     जल-थल-नभ सभ प्रभुहिं समाया।।
अघासुरै तन नाथ समावा।
यहितें पापी सद्गति पावा।
     यहि मा कछु नहिं अब संदेहा।
     सभ मा प्रभू रहहिं बिनु देहा।।
सौनक ऋषिहीं कहे सूत जी।
जीवन-दानय दिए किसुन जी।।
     सभ जन रच्छक किसुनहिं जानउ।
     जदुकुल-भूषन किसुनहिं मानउ।।
जानि बिचित्र चरित भगवाना।
नृपइ परिच्छित बनि अनजाना।।
     जानन चाहे प्रभु कै लीला।
     प्रश्न पूछि सुकदेवहिं सीला।।
पचवें बरस कै जे रह लीला।
कस भइ छठें बरस अनुसीला।।
     अस अचरज मैं जानि न पावउँ।
      हमहिं क गुरुवर अबहिं बतावउँ।।
दोहा-सुनहु परम प्रेमी भगत,सौनक जी महाराज।
         कहे सूत सुकदेव तब,नृपहिं कहा प्रभुराज।।
                     डॉ0हरि नाथ मिश्र
                       9919446372

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