डॉ0 हरि नाथ मिश्र

दूसरा-1
क्रमशः..…..*दूसरा अध्याय*
करब न जुधि मैं अर्जुन कहऊ।
अस कहि मौन तुरत तहँ भयऊ।।
      सुनि अर्जुन अस बचनइ राजन।
       कह संजय तब किसुन महाजन।।
बिहँसि कहेउ दोउ सेन मंझारी।
तजु हे अर्जुन संसय भारी।।
      कुरु न सोक जे सोक न जोगू।
       सोक न मन,मृत जीवित लोगू।।
कबहुँ न जे रह पंडित-ग्यानी।
साँच कहहुँ सुनु मम अस बानी।।
      आत्मा नित्य,सोक केहि कामा।
       अस्तु,सोक तव ब्यर्थ सुनामा।।
कल अरु आजु औरु कल आगे।
रहे हमहिं सब,रहहुँ सुभागे।।
       जे जन अहहिं तत्त्व-बिद-ग्यानी।
       नहिं अस धीर पुरुष अग्यानी।।
जानैं सूक्ष्म-थूल बिच अंतर।
नित्य-अनित्यहिं समुझहिं मंतर।।
       सरद-गरम, सुख-दुख संजोगा।
       छण-भंगुर ए इंद्रिय-भोगा।।
सहहु इनहिं अति मानि अनित्या।
हे कुंती-सुत ए नहिं सत्या।।
      इंद्रिय-बिषय न ब्यापै जोई।
       मोक्ष-जोग्य धीर नर सोई।।
नहिं अस्तित्व असत कै कोऊ।
रहहि सतत सत जानउ सोऊ।।
       अर्जुन, सुनु,अबिनासी नित्या।
        नित्य नास नहिं मानहु सत्या।।
दोहा-मानि सत्य अस मम बचन,जुद्ध करन हो ठाढ़।
        हे कुंती-सुत धीर धरु,रोकउ भ्रम कै बाढ़ ।।
                           डॉ0हरि नाथ मिश्र
                            9919446372 क्रमशः.......

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