*वर्षा*(चौपाइयाँ)
उमड़-घुमड़ नभ बदली छायी।
झूम-झूम कर वर्षा आयी।।
सोंधी-सोंधी खुशबू आती।
हर कोना महि का महकाती।।
बूढ़ी नदी बहे इठलाती।
जल-जीवों को गले लगाती।।
धरा ओढ़कर धानी चुनरी।
लगे नवोढा सुंदर-सँवरी।।
दामिनि-दमक-चमक-नभ शोभित।
घन-मंडित-आभा मन मोहित।।
विरहन-विरही-हिय हुलसाता।
मधुर मिलन-भाव मन भाता।।
वन - उपवन - पर्वत हर्षाते।
वर्षा-जल में मुदित नहाते।।
धरा तृप्त हो पाकर पानी।
सब ऋतुओं की वर्षा रानी।।
पंक्ति-बद्ध दादुर की वाणी।
लगती वेद-ऋचा कल्याणी।।
धन्य-धन्य हे वर्षा रानी।
बिना दाम ही देती पानी।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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