डॉ0 हरि नाथ मिश्र

बारहवाँ-5
  *बारहवाँ अध्याय*(श्रीकृष्णचरितबखान)-5
स्तुति-पाठ द्विजहिं सभ कीन्हा।
गा प्रसाद गंधर्बहिं लीन्हा ।।
   पर्षद सभें कीन्ह जयकारा।
   हते अघासुर प्रभु उपकारा।।
सुनतै स्तुति-मंगल गाना।
उछरि-कूदि आनंद मनाना।।
    ब्रह्मा ब्रह्म-लोक तें आए।
    किसुनहिं महिमा लखि सुख पाए।।
कीन्हेउ अघासुरै उद्धारा।
काल-मुहहिं तें गोप उबारा।।
     भई मही जनु पाप-बिहीना।
     सभें सरन निज नाथहिं लीना।।
प्रभु के छुवन मात्र अघ भागै।
सोवै पाप पुन्य जग जागै।।
    कारन-करम व ब्यक्त-अब्यक्ता।
    पुरुषइ परम सनेही-भक्ता।।
बाल-रूप जग लीला करहीं।
प्रभु परमातम सभ जन कहहीं।।
दोहा-एक मूर्ति प्रभु राखि के,करै जे नित-प्रति ध्यान।
         हिय मा रखि निरखै छबी,होय तासु कल्यान।।
        वहि सालोक्य-समीप्यही,वइसै गति कै दान।
        अस जन मिलै सतत इहाँ,अह जे भगत प्रधान।।
              डॉ0हरि नाथ मिश्र
               9919446372

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