बारहवाँ-5
*बारहवाँ अध्याय*(श्रीकृष्णचरितबखान)-5
स्तुति-पाठ द्विजहिं सभ कीन्हा।
गा प्रसाद गंधर्बहिं लीन्हा ।।
पर्षद सभें कीन्ह जयकारा।
हते अघासुर प्रभु उपकारा।।
सुनतै स्तुति-मंगल गाना।
उछरि-कूदि आनंद मनाना।।
ब्रह्मा ब्रह्म-लोक तें आए।
किसुनहिं महिमा लखि सुख पाए।।
कीन्हेउ अघासुरै उद्धारा।
काल-मुहहिं तें गोप उबारा।।
भई मही जनु पाप-बिहीना।
सभें सरन निज नाथहिं लीना।।
प्रभु के छुवन मात्र अघ भागै।
सोवै पाप पुन्य जग जागै।।
कारन-करम व ब्यक्त-अब्यक्ता।
पुरुषइ परम सनेही-भक्ता।।
बाल-रूप जग लीला करहीं।
प्रभु परमातम सभ जन कहहीं।।
दोहा-एक मूर्ति प्रभु राखि के,करै जे नित-प्रति ध्यान।
हिय मा रखि निरखै छबी,होय तासु कल्यान।।
वहि सालोक्य-समीप्यही,वइसै गति कै दान।
अस जन मिलै सतत इहाँ,अह जे भगत प्रधान।।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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