डॉ0 हरि नाथ मिश्र

*मयूर*
  *दोहे*(मयूर)
पावस-ऋतु अलमस्त छवि,घटा घिरे घनघोर।
मन-मयूर नर्तन करे,देखि नृत्य वन-मोर।।

नृत्य मयूरा है कड़ी,मध्य अवनि-आकाश।
जलद धरा धानी करे,लख मन हो न निराश।।

मोर-पंख-छवि है जगत,अद्भुत कला-प्रतीक।
कुदरत की कारीगरी,लगती परम सटीक।।

कार्तिकेय वाहन यही,देवतुल्य खग-वीर।
इसकी छवि को देख हो,प्रमुदित हृदय अधीर।।

सिर पर कलगी मोर के,शोभित मुकुट समान।
अनुपम पंख पसार खग,लगता शोभा-खान।।

धारे पंख मयूर की,सिर पर नंद-किशोर।
करते जन-जन को सदा,विह्वल-भाव-विभोर।।

यही राष्ट्र-पक्षी रुचिर,यही देश की शान।
इसकी रक्षा सब करें,यह भारत-पहचान।।
            ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                9919446372

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