तेरहवाँ-3
*तेरहवाँ अध्याय*(श्रीकृष्णचरितबखान)-3
बछरू मिले न ग्वालहिं पावा।
किसुनहिं मन बिचार अस आवा।।
अवसि खेल अस ब्रह्मा कीन्हा।
बछरू-गोप छिपाई लीन्हा।।
सकल ग्यान अरु सक्ति-स्वरूपा।
तेज-प्रतापय-अमित-अनूपा।।
प्रभु रह इहाँ-उहाँ सभ जगहीं।
नहिं कछु अलख,लखहिं प्रभु सबहीं।।
ब्रह्मा-मोह मिटावन हेतू।
कीन्हा माया कृपा-निकेतू।।
जितने बछरू,जितने गोपा।
वहि सुभाव रँग-रूप अनूपा।।
बात-चीत अरु हँसी-ठिठोली।
जैसहिं चलैं-फिरैं निज टोली।।
नाम-गुनहिं अरु भूषन-बसना।
जैसहिं बोलैं निज-निज रसना।।
खावन-पिवन, उठन अरु बैठन।
छड़ी-बाँसुरी,सिंगी-छींकन।।
हाथ-पाँव अरु छोट सरीरा।
प्रगटै किसुन भए बनबीरा।
मूर्तिमती भइ बेद क बानी।
बिष्नुमयी ई जगत-कहानी।।
बछरू-बालक भइ भगवाना।
बछरू गोपहिं माँ सुख पाना।।
ग्वालहिं बाल होइ बहु बछरू।
खेलत-कूदत लेइ क सगरू।।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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