डॉ0 निर्मला शर्मा

"  मनडे रो मीत  "

सात जनम रो साथी म्हारो, बाईसा रो वीर।
फेरा सात लिया जिन संग वा, बस्यो काळजै बीच।
जीवन रो आधार बण्यो जद, बंध्यो आपणो चीर।
मैं मरवण थे ढोला म्हारा, लिख दी संग तकदीर।
निरख-निरख इठलाऊँ देखूँ, थाने दर्पण बीच।
हिवड़े माय बसी थारी सूरत, नीको लागे मीत।

जीवन रो हर रंग सुहानो, लगे भँवर सा।
सब नाता सूं प्यारो लागे, छैल भँवर सा।
सब सूं प्यारी सब सूं न्यारी जोड़ी भँवर सा।
बादळ में ज्यों चमके चंदा चाँद कँवर सा।

डॉ0निर्मला शर्मा
दौसा राजस्थान

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