डॉ0 हरि नाथ मिश्र

*गीत*(16/16)
अखिल विश्व कर रहा रुदन है,
नहीं कुछ सूझे अब आधार।
मिले शीघ्र यदि नाथ सहारा-
मिले नाव को तभी किनारा।।

संकट की इस विकट घड़ी में,
नाथ-वंदना कष्ट मिटाए।
मूल मंत्र-जप नाथ-नाम है,
यह विपदा को दूर भगाए।
महा समर में मिले सफलता-
निर्मल-ठोस सोच के द्वारा।।
     मिले नाव को तभी किनारा।।

प्रभु-वंदन के साथ एकता,
भी तो रहती संकट- मोचन।
है असीम बल भरी एकता,
फलतः होता ऊँचा चिंतन।
कटे कष्ट श्रेष्ठ चिंतन से-
जिससे खुलता सुखद पिटारा।।
      मिले नाव को तभी किनारा।।

प्रभु का सुमिरन हर क्षण होता,
विचलित मन का शांति-प्रदाता।
साहस और विवेक बढ़ा कर,
संकट से लड़ना सिखलाता।
घोर अँधेरा यही छाँटता-
आशा रूपी उगा सितारा।।
      मिले नाव को तभी किनारा।।

सुख-दुख हैं परिभाषा जग की,
यह जग इनका ही डेरा है।
एक गया तो निश्चित समझें,
लगता दूजे का फेरा है।
चले बिठाकर ताल-मेल जो-
सुख-दुख का बस वही दुलारा।।
      मिले नाव को तभी किनारा।।
                ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                    9919446372

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