डॉ0 हरि नाथ मिश्र

*नैन*(सजल)
समांत-आरे
पदांत--लगते हैं
मात्रा-भार--26
नैन तुम्हारे सजनी प्यारे-प्यारे लगते हैं,
जो देखे लुट जाए कितने न्यारे लगते हैं।।

बिना वाण के प्रेमी-हृद का छेदन करते हैं,
शमशीरों की तेज धार को धारे लगते हैं।।

रति-अनंग का तेज लिए,विरह-वेदना देते,
मिलन अयोग्य ये सरिता के किनारे लगते हैं।।

चंचल-छलिया इतने हैं,नहीं किसी पे टिकते,
रवि-किरणों के जैसे सबपे वारे लगते हैं।।

 अद्भुत गुण से पोषित ये, दोनों नैन तुम्हारे,
प्रकृति-न्यायप्रिय-भावों से सवाँरे लगते हैं।।

देवों जैसे विमल नेत्र द्वय,छवि निर्मल धारे,
बादल रहित गगन के चाँद-सितारे लगते हैं।।

सायक कुसुम चला अनंग जब घायल करता है,
घायल मन के नैना,नेक सहारे लगते हैं।।
              ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                   9919446372

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