डॉ0 हरि नाथ मिश्र

गीत
*संदेश*
मोहब्बत का मतलब बताने चले हैं,
बुझे दीप को फिर जलाने चले हैं।
अँधेरा कहीं रह न जाए ज़मीं पे-
पुनः रश्मि रवि की उगाने चले हैं।।
      न जाने कहाँ खो गयी है मनुजता,
      सितम आज ढाती नज़र आती पशुता।
      समझ भ्रांतियों से हुई है प्रदूषित-
      उन्हीं भ्रांतियों को भगाने चले हैं।।
आज खिलने से पहले कली सोचती है,
कि दुनिया मुझे बेवजह नोचती  है।
खिलूँ ना खिलूँ डर ये रहता  हमेशा-
इसी डर को मन से मिटाने चले हैं।।
      माता-पिता,पुत्र-पुत्री के रिश्ते,
      इतने नहीं थे कभी पहले सस्ते।
      बढ़ी बेवजह जो हैं रिश्तों में दूरी-
       उन्हीं दूरियों को घटाने चले हैं।।
बगल देश से रोज मिलती है धमकी,
कुछ अपने भी हैं जिनसे बनती है उसकी।
नहीं  अच्छा  लगता  है  वर्ताव  ऐसा-
इसी भाव को हम  जताने चले  हैं।।
     राष्ट्र की शक्ति रहती निहित एकता में,
     निखरता चमन पुष्प की भिन्नता  में।
     यही दास्ताँ अपने चमने वतन की-
     तुम्हें,दुनिया वालों, सुनाने चले हैं।।
नहीं डालना अपनी गंदी नज़र तुम,
नहीं तो तुम्हें भेज देंगे  जहन्नुम।
हमारी है फितरत गले से  लगाना-
हसीं इस  अदा को लुटाने चले हैं।।
    मिले जल सभी को सदा स्वच्छ निर्मल,
    सदा  सर-तड़ागों  में  खिलता  कमल।
    प्रकृति-प्रेम से रहे  धरती  अघाई-
    गरीबों की बस्ती  बसाने  चले  हैं।।
बुझे दीप को फिर जलाने चले हैं।
पुनः रश्मि रवि की उगाने चले हैं।।
               ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                9919446372

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