गीत
*संदेश*
मोहब्बत का मतलब बताने चले हैं,
बुझे दीप को फिर जलाने चले हैं।
अँधेरा कहीं रह न जाए ज़मीं पे-
पुनः रश्मि रवि की उगाने चले हैं।।
न जाने कहाँ खो गयी है मनुजता,
सितम आज ढाती नज़र आती पशुता।
समझ भ्रांतियों से हुई है प्रदूषित-
उन्हीं भ्रांतियों को भगाने चले हैं।।
आज खिलने से पहले कली सोचती है,
कि दुनिया मुझे बेवजह नोचती है।
खिलूँ ना खिलूँ डर ये रहता हमेशा-
इसी डर को मन से मिटाने चले हैं।।
माता-पिता,पुत्र-पुत्री के रिश्ते,
इतने नहीं थे कभी पहले सस्ते।
बढ़ी बेवजह जो हैं रिश्तों में दूरी-
उन्हीं दूरियों को घटाने चले हैं।।
बगल देश से रोज मिलती है धमकी,
कुछ अपने भी हैं जिनसे बनती है उसकी।
नहीं अच्छा लगता है वर्ताव ऐसा-
इसी भाव को हम जताने चले हैं।।
राष्ट्र की शक्ति रहती निहित एकता में,
निखरता चमन पुष्प की भिन्नता में।
यही दास्ताँ अपने चमने वतन की-
तुम्हें,दुनिया वालों, सुनाने चले हैं।।
नहीं डालना अपनी गंदी नज़र तुम,
नहीं तो तुम्हें भेज देंगे जहन्नुम।
हमारी है फितरत गले से लगाना-
हसीं इस अदा को लुटाने चले हैं।।
मिले जल सभी को सदा स्वच्छ निर्मल,
सदा सर-तड़ागों में खिलता कमल।
प्रकृति-प्रेम से रहे धरती अघाई-
गरीबों की बस्ती बसाने चले हैं।।
बुझे दीप को फिर जलाने चले हैं।
पुनः रश्मि रवि की उगाने चले हैं।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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