डॉ0 हरि नाथ मिश्र

ग्यारहवाँ-6
  *ग्यारहवाँ अध्याय*(श्रीकृष्णचरितबखान)-6
एकमात्र रच्छक जग लोका।
सोक-ग्रस्त कहँ करैं असोका।।
    सो प्रभु कृष्न औरु बलदाऊ।
   बनि चरवाहा बछरू-गाऊ ।।
बन-बन फिरहिं अकिंचन नाईं।
लकुटि-कमरिया लइ-लइ धाईं।।
     एक बेरि बन गाय चरावत।
     सभ गे निकट जलासय धावत।
ग्वाल-गऊ-बछरू पी पानी।
करत रहे उछरत मनमानी।।
     देखे सभें एक बक भारी।
     किसुनहिं निगलत अत्याचारी।।
गिरे सबहिं भुइँ होइ अचेता।
कंसइ असुर रहा ऊ प्रेता।।
    ब्रह्म-पितामह-पिता कन्हाई।
    लीला करहिं सिसू बनि आई।।
उदर बकासुर मा जा कृष्ना।
लगे जरावन वहि बहु तिक्षना।।
    बिकल होय तब उगला प्रेता।
    बाहर निकसे कृपा-निकेता।।
पुनि निज चोंचहिं काटन लागा।
निरमम-निष्ठुर दैत अभागा।।
    तुरत किसुन धइ दुइनउँ चोंचा।
    कसि के फारे बिनु संकोचा।।
मरा बकासुर मचा कुलाहल।
गगनहिं-सिंधु-अवनि पे हलचल।।
    जस कोउ चीरहि गाड़र-क्रीड़इ।
    फारे प्रभू बकासुर डीढ़इ।।
मुदित होइ सभ सुरगन बरसे।
सुमन चमेली-बेला हरसे ।।
    संख-नगारा बाजन लागे।
     पढ़ि स्तोत्र कृष्न-अनुरागे।।
पुनि बलराम-ग्वाल भे चेता।
लखि के किसुन हते सभ प्रेता।।
     सभ मिलि किसुन लगाए गरहीं।
      मन-चित-हृदय मगन बिनु डरहीं।।
दोहा-लवटि आइ सभ गोपहीं,जाइ के निज-निज धाम।
         अद्भुत घटना बरनहीं, किसुन-बकासुर-काम ।।
                        डॉ0हरि नाथ मिश्र।
                         9919446372

कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...