श्रीमती चंचल हरेंद्र वशिष्ट

०२/०६/२०२१
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शीर्षक: 'बुद्ध के मार्ग  पर चल'

बुद्ध के मार्ग पर चल रे प्राणी!,बुद्ध के मार्ग पर चल
बुद्ध की राह निर्मल,रे प्राणी!बुद्ध की राह निर्मल।

अष्टांगिक मार्ग अपनाकर जीवन को बना सफल......
सत्पथ पर ही पाएगा प्राणी जीवन का सार सकल।
टेक:   रे प्राणी! बुद्ध के मार्ग पर चल..... 

मानव जन्म अनमोल मिला सत्कर्म करले निश्च्छल 
प्रेम,अहिंसा,दया धर्म, और सत्य मार्ग पर चल।
टेक:  रे प्राणी! बुद्ध के मार्ग पर चल .....

बुद्ध ने जो संदेश दिया सदा उस पर करना अमल
वसुधैव कुटुंबकम् की भावना अपनाके ही चल।
टेक: रे प्राणी! बुद्ध के मार्ग पर चल........

दया,दान,सेवा कर उनकी हैं जो दीन हीन निर्बल
सभी संतान हैं एक ईश की करना ना किसी से छल।
टेक:   रे प्राणी! बुद्ध के मार्ग पर चल......

इस नश्वर संसार में ज्ञान और संयम ही है तेरा बल
दुनिया के हर जीव पर बरसा तू नेह भाव अविरल।
टेक:  रे प्राणी! बुद्ध के मार्ग पर चल.....

सिद्धार्थ से गौतम बुद्ध बनने की राह नहीं थी सरल
दृढ़संकल्प,ज्ञान और इच्छा शक्ति थी अति प्रबल।
टेक:  रे प्राणी! बुद्ध के मार्ग पर चल......

ज्ञान की खोज में अडिग बढ़े जो करके निश्चय अटल
मध्यम मार्ग को अपनाकर ही बनती है राह सरल।

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स्वरचित रचना:
श्रीमती चंचल हरेंद्र वशिष्ट,
हिंदी प्राध्यापिका,थियेटर शिक्षिका एवं कवयित्री
आर के पुरम,नई दिल्ली

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