ग़ज़ल--
बड़े खुलूस से जब वो ख़याल करते हैं
इसीलिये उन्हें हम भी निहाल करते हैं
हमें भी दिल पे नहीं रहता अपने फिर काबू
अदाओ नाज़ से जब वो धमाल करते हैं
जवाब कोई मुझे सूझता नहीं उस दम
वो बातों बातों में ऐसा सवाल करते हैं
खँगाल लेते हैं चुपचाप मेरा मोबाइल
*वो इस तरह से मेरी देखभाल करते हैं*
पकड़ में आती हैं जब जब भी ग़लतियाँ उनकी
वो उस घड़ी ही मुझे अपनी ढाल करते हैं
ख़ुदा भी बख़्श उनके गुनाह देता है
पशेमाँ होके जो दिल से मलाल करते हैं
बड़े बुज़ुर्ग भी हैरत में आज हैं *साग़र*
ये दौरे नौ के जो बच्चे कमाल करते हैं
🖋️विनय साग़र जायसवाल,बरेली
27/5/2021
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