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कविता
*कागज के फूल*
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बचपन में बहुत बनाये,
रंगीन कागज के फूल।
आया आधुनिक जमाना,
सभी गये उनको भूल।।
चाहे तुम कुछ भी समझो,
सुंगध उनमें आती थी।
पावनता की खूशबू,
दूर-दूर तक जाती थी।।
याद करो सब वो दिन भी,
मिलकर खुशियाँ मनाते।
बना कागज की तीतरी,
रोज हवा में उड़ाते।।
कागज की अनुपम महिमा,
देख सौंदर्य इतराते।
पुराने कागज के फूल,
कितनों की भूख मिटाते।।
©®
रामबाबू शर्मा,राजस्थानी,दौसा(राज.)
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