शीर्षक -माँ
माँ मुझे चरणों में जगह दे ,ममता का तू आँचल ओढ़ा दे, और मुझे क्या चाहीये।।
माँ दूध तेरा अमृत
आशीष प्यार तेरा ,ढाल
और मुझे क्या चाहिये।।
माँ मैँ तेरी सेवा करूँ
मूरत भगवान की तुझमे
देखा करूँ मुझे और क्या चाहिये।।
पल प्रहर तेरे ही अरमानो को जिया करूँ तेरे ही पलों की जिंदगी
पला बढ़ा कोई गिला ना शिकवा
करूँ और मुझे क्या चाहिये।।
नौ माह तेरी कोख ने पाला
हर दुःख पीड़ा का पिया विष हाला
माँ कर्ज़ तेरा कैसे मैँ उतार दू,तेरे कर्ज का फ़र्ज़ को दूँनिया पे वार दूं और मुझे क्या चाहिये।।
माँ मैं तेरा सूरज चाँद
तू ही कहती है ,बापू का नाज
मरे लिये तू ही धरती आसमान
जन्नत जहाँ और मुझे क्या चाहिये।।
माँ तू मेरी शरारत को कहती सही
मैं किसी भी हद से गुजर जाऊं सहती
माँ मेरी हस्ती तू, मेरी मस्ती तू, मेरे जज्बे की ज्योति तू और मुझे क्या चाहिए।।
माँ तू शक्ति है, माँ तू मेरी भक्ति है,
मेरे समर्थ की ज्वाला दूँनिया में मेरे
रिश्तों की धुरी है ।।
माँ मेरा तू आसरा,माँ मैँ तेरा ही आश विश्वाश मुस्कान,और मुझे क्या चाहिये।।
माँ जब भी लूँ जनम मैँ ,तेरा ही बेटी या बेटा रहूं ,तेरी ममता के आंचल पे जन्नत भी शरमाये मुझे और क्या चाहिये।।
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश
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