"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी चंचल
नृप होता यदि सारे जग का, क्षीर सिन्धु मा रहता।। मगरमच्छ सेनापति होता, ह्वैल को मन्त्री चुनता।। बाकी जीव का पहरा होता, पोत ना कतौ गुजरता।। सूर्य चाँद रखवाली नभ की, नित ध्रुव निशा चमकता।। आतंक कलह थल पर नहि होता, रामराज्य डग भरता।। दैहिक दैविक ताप ना होते, भौतिक ना कहूँ जमता।। यमदूतों को कैद कराता, रावन कहीं ना जमता।। देवी देव मौज नभ करते, भैरव पहरा भरता।। खानपान की कमी ना होती, वयरस कतौ ना जमता।। जलनिधि सबु अगवानी करते, पर्वत हामी भरता ।। चंचल राजकाज जग होता, मायाजाल ना रमता।। आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी, चंचल। ओमनगर,सुलतानपुर, उलरा,चन्दौकी ,अमेठी,उ.प्र.। मोबाइल.8853521398,9125519009।।
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