यामिनी ने करवट में काटी,
अम्बर तल पर निशा सगरी,
झुरमुट तारों के बीच बैठ,
देखती रही विरहा बदरी ।
स्निग्ध चन्द्र धुधला सा गया,
हिय पीर समा पराई गई।
अति कौतुक भौरा चूम गया,
प्रसून कली शरमाई गई।
झन झन झींगुर झनकार रहे,
तट तरनी किरनें नाच रहीं।
इठलाय चली धारा नद की,
मिलन की आस पिय राह वहीं।
शशि भाल सुशोभित हैं नभ के,
तारागण बिखरे स्वागत में।
पिय योग वियोग,सुयोग नहीं,
यामिनी जलती चाँदनी में।
यामिनी सजी शशि किरनों से,
दिन सज्जित हुआ रवि रश्मि से,
दिन-रैन मिलन बस पल भर है,
हिय टीस मिटे न दोउ मन से।
स्वरचित-
डाॅ०निधि मिश्रा ,
अकबरपुर ,अम्बेडकरनगर ।
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