सुनीता असीम

कुछ भी हो बस खिलखिलाते जाइए।
जिंदगी  के  सुख      उठाते  जाइए।
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ख़ार सा जीवन हो जीते  क्यूं भला।
गुल खिला इसको सजाते  जाइए।
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जुस्तजू जिनकी मुहब्बत हो फकत।
प्यार उनको भी सिखाते जाइए।
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मत भरो इसमें कभी मायूसियाँ।
प्रेम के दीपक जलाते जाइए।
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एक होकर हम रहें अद्वैत से।
राज हमको वो बताते जाइए।
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सुनीता असीम
३१/६/२०२१

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