अनिल गर्ग

कहानी बुद्धिहीन सेवक

किसी शहर में एक सेठ रहता था । किसी कारणवश उस बेचारे को अपने कारोबार में घाटा हो गया और वह गरीब हो गया। गरीब होने का उसे बहुत दुख हुआ था। इस दुख से तंग जाकर उसने सोचा कि इस जीवन से क्या लाभ? इससे तो मर जाना अच्छा है । 

यह सोचकर एक रात को वह सोया तो रात को उसे सपने में एक संन्यासी नजर आया जो उसे कह रहा था, 'सुनो, सेठ, तुम मरो मत, मैं तुम्हारे सारे दु:ख दूर करने के लिए कल सुबह तुम्हारे घर पर आऊंगा। तुम मेरे सिर पर डंडा मारना, मैं उसी समय सोने का बन जाऊंगा।' संन्यासी की बात सुनकर दुःखी सेठ ने सोचा कि चलो एक बार और देख लेते है। 
यही सोचकर वह सुबह से ही अपने घर पर बैठे संन्यासी की प्रतीक्षा करने लगा। उसका नौकर नाई भी उस समय उसके पास ही बैठा था। थोड़े ही क्षणों के पश्चात् जैसे ही यह संन्यासी सेठ को आता दिखाई दिया तो उसने झट से अपना डंडा उठाकर उसके सिर पर दे मारा। 

बस फिर क्या था, देखते-ही-देखते वह सोने का बनकर गिर पड़ा। उसे वहां से उठाकर खुशी से नाचता सेठ अंदर ले गया। उसने नाई को इनाम में कुछ रुपए देकर कहा, "तुम जाओ, लेकिन यह बात बाहर जाकर किसी से मत कहना ।‘ 
नाई ने अपने घर जाकर सोचा कि जितने भी ये संन्यासी फिर रहे हैं यदि इनके सिर पर डंडा मारा जाए तो ये सोने के बन जाएंगे । सो मैं भी सुबह उठते ही इन सबके सिर पर डंडे मारूंगा और फिर...मैं भी अमीर... 
बस फिर क्या था, सुबह उठते ही उसने एक बड़ा लठ लिया और चल पड़ा सन्यासियों की खोज में और एक स्थान पर जहाँ बहुत से भिक्षुक ठहरे हुए थे,उन्हें अपने घर पर आने का निमंत्रण दिया। जैसे ही वह खाने के लिए घर पर आए तो नाई पहले से ही द्वार पर लठ लेकर बैठा था।

बस फिर क्या था,जैसे ही साधु अंदर आने लगे,नाई बारी-बारी उनके सिर पर लठ मारता रहा। उनमें से कोई मर गया कोई  गहरे घाव  खाए धरती पर तड़पता रहा। यह सूचना राजा की पुलिस तक पहुंच गई। पुलिस ने नाई को बंदी बना लिया और साथ ही साधुओं की लाशें  और घायल साधुओं को लेकर राजा के पास पहुंचे।

राजा ने नाई से पूछा,'तूने यह पाप क्यों किया?'उत्तर में नाई ने सेठ वाली सारी कहानी राजा को सुना डाली। नाई की कहानी सुन राजा ने सेठ को बुलाया और सब बात पूछी तो  सेठ ने अपना सारा सपना राजा को बता दिया।सेठ की बात सुन राजा ने कहा,'यह सारा दोष नाई का है, इसे फांसी दे दी जाए।'इस प्रकार नाई को फांसी दे दी गई। इसलिए कहा है-
'जो ठीक से देखा,जाना और सुना न हो, वह न करना चाहिए,जैसा कि नाई ने किया और मारा गया।
 अनिल गर्ग, कानपुर

कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...