निशा अतुल्य

सुशांत को श्रद्धांजलि स्वरूप


ये समुंदर बड़ा गहरा है 
छोटी मछली की बिसात क्या
कब कौन बड़ा भी ठहरा है 
लगता था तुम जैसा ही मैं 
पर समझ कहाँ कोई पाया
देखा होता समझा होता 
मैं भी तुमसे अलग नहीं था ।

कुछ घबराए,कुछ रहे छुपाए 
तुम फिल्मी दुनिया के अफसाने
मैनें देखा, कुछ मैंने परखा 
वो मेरी समझ नहीं आए ।

जब प्रश्न किया मैनें तुमसे
तुम मुझसे ही थे घबराए 
राह  मिली न कोई तुम्हें
तुम थे ख़ुद से ही भरमाए।

ईश्वर की ये मर्जी थी
तुम्हारी भी खुदगर्जी थी
बच नहीं पाओगे तुम 
जैसी करनी वैसी भरनी थी ।

कुछ मुझसे हुआ गलत होगा
जिसका मैंने ये दुख भोगा 
ये बात समझ जाओगे अगर
मन का संवाद देगा धोखा ।

वो शिवशंभु वो अभ्यंकर
मेरा ईश वो मेरा प्रभु 
निमित किया कोई काम बड़ा 
बुला लिया मुझको जल्दी ।

मैं लौट के फिर से आऊंगा
और सारे कर्ज चुकाऊंगा
तुम मुझ बिन मर न पाओगे
मैं तुमको सबक सिखाऊंगा।

प्रतिशोध की एक परिभाषा है 
हर काम यहां है सबके निमित 
समय जरूर करवट लेगा 
मैं कर दूंगा फिर तुम्हें सीमित ।

स्वरचित
निशा"अतुल्य"

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