सुषमा दिक्षित शुक्ला

माता 

माता से बढ़कर दुनिया में ,
कोई पूज्य नहीं है ।
माता की पावन ममता का ,
कोई मूल्य नहीं है ।
साक्षात वह लक्ष्मी ,दुर्गा ,
वही पार्वति  माता ।
माता की जो  सेवा करता ,
वह तारण हो  जाता ।
नौ महीने धारण करती है ,
धात्री तभी  कहाती है।
 दुग्ध पान दे पोषण करती,
 अप्रतिम प्यार लुटाती है।
 रात दिवस वह मेहनत करती
 संतानों के पालन में ।
जाग जाग खुद उन्हें सुलाती 
कभी न थकती लालन में ।
मां के हाथों के खाने सा,
 इस दुनिया में स्वाद नहीं ।
सच्चा प्यार मिलाकर परसे ,
शायद इसका राज यही।
 सारी दुनिया अगर छोड़ दे,
 कभी न छोड़े प्यारी मां 
बच्चों हित न्यौछावर रहती ,
सबसे  होती  न्यारी मां ।
माता की सेवा से बढ़कर 
कोई  कर्म  नहीं  है। 
कर्ज़ दूध का चुका सको ,
बस सच्चा धर्म यही है।

 सुषमा दिक्षित शुक्ला

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