माता
माता से बढ़कर दुनिया में ,
कोई पूज्य नहीं है ।
माता की पावन ममता का ,
कोई मूल्य नहीं है ।
साक्षात वह लक्ष्मी ,दुर्गा ,
वही पार्वति माता ।
माता की जो सेवा करता ,
वह तारण हो जाता ।
नौ महीने धारण करती है ,
धात्री तभी कहाती है।
दुग्ध पान दे पोषण करती,
अप्रतिम प्यार लुटाती है।
रात दिवस वह मेहनत करती
संतानों के पालन में ।
जाग जाग खुद उन्हें सुलाती
कभी न थकती लालन में ।
मां के हाथों के खाने सा,
इस दुनिया में स्वाद नहीं ।
सच्चा प्यार मिलाकर परसे ,
शायद इसका राज यही।
सारी दुनिया अगर छोड़ दे,
कभी न छोड़े प्यारी मां
बच्चों हित न्यौछावर रहती ,
सबसे होती न्यारी मां ।
माता की सेवा से बढ़कर
कोई कर्म नहीं है।
कर्ज़ दूध का चुका सको ,
बस सच्चा धर्म यही है।
सुषमा दिक्षित शुक्ला
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