विजय मेहंदी

रचना  का शीर्षक-" पिता " 
विधा - कविता
कलमकार - विजय मेहंदी 
जनपद- जौनपुर 
प्रदेश - उत्तर प्रदेश 

      "   पिता  तो  अतुल्य  हैं  "

         परिवार   की    आन   हैं,
         एक कुल की पहचान  हैं।
         बड़े         कदरदान     हैं,
         कुल    की     कमान   हैं।
         संरक्षक    अमुल्य       हैं,
         पिता    तो    अतुल्य   हैं।
    
         संकट   की     ढ़ाल     हैं,
         एक  कुल  का खयाल  हैं।
         कुल- रक्षक  हर  हाल  हैं,
         सारथी     कमाल        हैं।
         कृष्ण    के   समतुल्य   हैं,
         पिता  जी    अतुल्य     हैं।

         माँ  के  सिर  की   ताज हैं,
         एक  माँ  की   आवाज  हैं।
         पिताजी  माँ की दुनिया  हैं,
         माँ के जीवन के हमराज हैं।
         एक  माँ-निधी   अमुल्य  हैं,
         श्री  पिता  जी   अतुल्य  हैं।

          पिता बच्चों के  सूत्रधार हैं,
          कुल-नयिया  खेवनहार  हैं।
          पिता जीवन के  आधार हैं,
          एक  कुल   की   बहार  हैं।
          पिताजी  कुल की शक्ति हैं,
          पूर्ण  नहीं  आभिव्यक्ति  है।
          

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