वंशिका अल्पना दुबे

पापा

मैं पापा की लाडली हूं,
मैं उनकी राजदुलारी हूं l

है मुझ में कुछ खास नहीं,
फिर भी उनकी प्यारी हूं l

है मुझ में कोई महक नहीं,
फिर भी उनके आंगन की कली हूं l

मैं इतनी सुंदर भी नहीं,
फिर भी पापा की परी हूं l

मैं पढ़ने में इतनी तेज भी नहीं,
फिर भी पापा की होशियार बेटी हूं l

है मुझ में कोई खासियत नहीं,
फिर भी पापा की शान हूं, अभिमान हूं l

कमाया आज तक एक रुपया भी नहीं,
फिर भी अपने पापा की लक्ष्मी हूं l

आता नहीं ठीक से खाना पकाना,
फिर भी पापा को भाये मेरे हाथ का ही खाना l

आ जाए जो मुझे किसी बात पर रोना,
मुझे रोते देख पापा का उदास हो जाना l

मेरे ना होने पर मेरी चिंता करना,
मुझे देखते ही पापा का आ गई मेरी शेरनी कहना l

जब मेरे पापा मेरे साथ होते हैं,
तब मुझ में एक अजीब सा विश्वास होता है l

कुछ भी कर गुजरने का जज्बा होता है,
हर हाल में जीत जाऊंगी यह विश्वास होता है l

मैं हूं बहुत ही खास इस बात का एहसास होता है,
मैं किसी से कम नहीं इस बात का यकीन होता है l

पर ना जाने क्यों पल भर में ही पापा,
आपने सौंप दिया अपनी नन्ही परी को, किसी और को l

कर दिया विदा अपने घर से,
कह दिया कि बेटी यह तो रिवाज है l

ना जाने यह कैसी रीत होती है,
ना चाहते हुए भी बेटी अपने पापा से जुदा होती है l

वंशिका अल्पना दुबे 
(बेंगलुरु)

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