लघुकथा
*शुभ झींक*
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अरे...रे..!!छींक दिया..!!
घर की बडी बुजुर्ग एक साथ बोल उठीं।
प्रभा की शादी के मंगल गीत गाते हुए अचानक ओहो.. छींक दिया..!
छींक दिया..!!करने लगीं।
प्रभा को तेल हल्दी लगायी जा रही थी।
पंडित जी पुकार रहे थे,” कन्या को बुलाईये,”
कन्या को चौकी पर बैठाया गया।
पंडित जी फिर बोले,” दादाजी दादीजी को बुलाईये,सबसे पहले वे ही तेल चढायेंगे,”
प्रभा की छोटी बहिन जल्दी से दौड कर दादाजी दादीजी का हाथ पकड कर ले आयी।
पंडित जी ने तेल,हल्दी,दूब दादाजी के हाथ में देकर समझाया कि तेल कन्या को कैसे लगाना है।
जैसे ही दादाजी तेल लगाने झुके,,
सुनैना( प्रभा की छोटी बहिन)को जोर से छींक आ गयी।
तभी से सब औरतें उसको तिरछी नजर से देख रहीं हैं..!!उनमें से एक बुजुर्ग ने कहा,” रूक जाईये भाईसाहेब शुभ काम में छींकना अच्छा नहीं होता, कुछ देर बाद चढाईयेगा,”
दूसरे कमरे में प्रभा के बडे भाई, जो पेशे से डॉक्टर हैं,कथा दकियानुसी बातें बिल्कुल नहीं मानते हैं, निकलकर आये और सब लेडीज को देखकर बोले,”
अरे..ताईजी आपको पता नहीं है क्या ,सुनैना की छींक तो बडी शुभ है,मैं इसकी छींक का इन्तजार करता हूँ कोई भी शुभ काम करने से पहले।,” फिर सुनैना को देखकर बोले,” थैंक्यू सुनैना,”
आज सुनैना के पैर जमीन पर नहीं पड रहे थे।
भैया के आगे सब निरूत्तर .....
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सुखमिला अग्रवाल,
‘भूमिजा’
स्वरचित मौलिक
सर्वाधिकार सुरक्षित्
मुम्बई
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