संवेदनाएँ
आओ! सुषुप्त देवत्व को,हम सब जगाएँ
संवेदनाएँ ,चितन,देवो सा अपना हम बनाएँ।
सब प्राणियों में मानव ही श्रेष्ठतम किस लिए है,
क्योंकि संवेदन की भी वह संपदा लिए है।
क्योंकि संवेदनाएँ ही तो हमारे विचार जनक हैं,
बातें वही मनुज में व्यवहार की चमक हैं।
संवेदनाएँ-चरित्र-पहीए दोनों ही संतुलित हों,
जीवन का रथ न बहके,पथ भ्रष्ट न पतित हो।
ऐसे ही 'लोकसेवी' व्यक्तित्व निखरता है,
दुर्लभ मनुष्य हीजीवन, यूँ ही सँवरता है।
इस हेतु श्रेष्ठ संवेदनाएँ करते रहें सदा ही,
'सर्वे भवन्तु सुखिनः ' का मंत्र सर्वदा ही।
संवेदनशील का अभाव मानवता होता है,
विद्रूपता, विषमता का खेद वहाँ सदैव होता है।
डॉक्टर रश्मि शुक्ला
प्रयागराज
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें