गौरव शुक्ल

अपना एक प्रिय गीत आप सभी के समक्ष सादर-

यदि अपनी पीड़ा कह देना ,एक निशानी दुर्बल मन की,
तो इस दुनिया में निस्संशय , सबसे दुर्बल मन मेरा है।
(1)
 घुट-घुट कर अपनी पीड़ा को सहना मुझसे नहीं हो सका।
तिल-तिल पर मर-मर कर जीवित रहना मुझसे नहीं हो सका।

मैंने छोड़ हीनता सारी ,
अपनी ही वेदना पुकारी।
         जब-जब धोखा मन ने खाया ,
         तब मैं धीरज रोक न पाया।

 मैंने चीख-चीख कर सारी व्यथा उगल डाली पृष्ठों पर,
यह अपराध अगर है तो फिर अपराधी जीवन मेरा है।

यदि अपनी पीड़ा कह देना......... 
(2)
मेरी हँसी जहाँ पर बिखरी, वह धरती मैं भूल न पाया;
याद मुझे है जहाँ हृदय ने, थके हुए, विश्राम मनाया। 

ह्रदय जहाँ पर टूटा मेरा, 
मीत जहाँ पर रूठा मेरा। 
         मेरे आँसू गिरे जहाँ पर, 
        याद मुझे वह जगह बराबर। 

मेरा गुण है यही, इसे तुम, दोष समझते हो तो समझो;
सुधियों के आँगन में प्रतिदिन,होता अभिनंदन मेरा है।

यदि अपनी पीड़ा कह देना......... 
(3)
 अपने अब तक के जीवन में, केवल मोह कमाया मैंने; 
जहाँ प्रेम के बोल सुने दो, सिर को वहीं झुकाया मैंने। 

अपनापन मिल गया जहाँ पर, 
मैं हो गया वहीं न्योछावर। 
        जिसने मुझसे हाथ मिलाया, 
         मैंने बढ़कर गले लगाया। 

असफल जीवन जीने का अभियोग लगेगा मुझ पर लेकिन, 
गौरवपूर्ण सिद्धि है मेरी, वंदनीय अर्जन मेरा है।

यदि अपनी पीड़ा कह देना......... 
               ------------
-गौरव शुक्ल 
मन्योरा 
लखीमपुर खीरी 
मोबाइल - 7398925402

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