नदिया कछारे ऊँचो पर्वत निवास माई,जाको लालेलाल ध्वज नीको फहरा रही।। घंटाघड़ियाल शंख मधुरमधु ध्वनि बाजे,झाँझ करताल ढोल मनवा मा भा रही।।
वेदमंन्त्र वाँचत नीको लागत बटुक जन ,कहूँ ध्यानी ध्यानु देतु शोभा लरजा रही।।
भाखैं कवि चंचल मनावौं कर दुइनौ जोरि,माई मोरी नजरौ ना मोहे अरूझा रही।।1।। द्वारे पै पुकारौं माई मधुरध्वनि बजाय बाजौ,माई मोरी अरजी मनवा काहै को ना भा रही।। भक्तन उद्धार खातिन भूमि जो निवास कैलू,पण्डन दुःख खण्डन मा बेरी नाही भा रही।। चंचल भक्त माई अजहूँ कबौ ना कृपा मिली,रस्ता भुलानिऊ माई याकि कछू खता रही।। जाऊँगा ना दर तेरो याकि ये ठिकानो छाँडि़, आया प्रण ठानि माई जब लौं कृपा सही।।2।।
आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी, चंचल।ओमनगर,सुलतानपुर, उलरा,चन्दौकी, अमेठी,उ.प्र.। मोबाइल.8853521398,9125519009।।
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