मधु शंखधर स्वतंत्र

*मधु के मधुमय मुक्तक*
*प्रयाग*
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यह प्रयाग की भूमि ही, ब्रम्हा यज्ञ सुधाम।
गंगा यमुना से मिले, सरस्वती शुभ नाम।
संगम पावन तीर्थ ही , ऋषि मुनियों का वास,
तीर्थराज कहते इसे, भक्ति मुक्ति निष्काम।।

मातु अलोपी प्राग् में, शक्ति हरे सब त्राण।
यहाँ मातु ललिता करें , रक्षा सबके प्राण।
लेटे हनुमत हैं शरण, माँ गंगा के पास,
शक्ति भक्ति के मेल से, होता है कल्याण।।

इस प्रयाग को ही कहें, मनुज इलाहाबाद।
है ऐतिहासिक तथ्यगत , उच्च न्याय संवाद।
राजनीति की धरा ये, जन्मे लाल महान,
आज़ादी का गढ़ बना, दिए प्राण आजाद।।

इस प्रयाग के मूल में, लेखन का अनुराग।
यहाँ निराला का उदय, पंत निहित शुभ भाग।
मधुशाला हरिवंश की , बनी समर्थित ज्ञान,
यहाँ महादेवी रची , नारी का *मधु* त्याग।।
*मधु शंखधर स्वतंत्र*
*प्रयागराज*✒️
*12.06.2021*

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