विषय: रौशनाई
कलम की आत्मा हूँ में ,जिससे चलती उसकी लिखाई
कोई कहे रोशनाई मुझको,कोई कहता है स्याही
दिया-बाती सा नाता हमारा,इक दूजे बिन अधूरे
कलम में जब भर जाती हूँ, करती काम मैं पूरे
बिन कलम मेरा अस्तित्व अर्थहीन सा
,बिन मेरे कलम ना काम की
पर जब मिल जाते हम दोनों
,माँ शारदे इनमें समाती
लाल,नीली,काली विवध रंगो से मैं रंगाई
कोरे कागज पर कलम लिखती सुंदर लिखाई
हम दोनों का संग कवि,लेखक को लगता बड़ा ही प्यारा
हमको समझे सदा मित्र अपना,
भावों को मन के प्रकट कोरे कागज़ पर करता
जो कुछ भी मन उसके रहता
नंदिनी लहेजा
रायपुर(छत्तीसगढ़)
मौलिक स्वरचित
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