मधु शंखधर स्वतंत्र

मधु के मधुमय मुक्तक
🌹🌹 *धरोहर*🌹🌹
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◆ बसा धरोहर भाव से, मात पिता को मूल।
जन्मदायिनी माँ सुखद, पिता प्रेम अनुकूल।
सेवा से जो कर सको, कर्म निहित सत्कार,
स्वयं श्रेष्ठता भाव से, लो चरणों 
की धूल।।

◆ बनी धरोहर सभ्यता, शुचि पावन आधार ।
पौराणिक सब ग्रंथ में, शुभ गीता का सार।
श्रेष्ठ मनुज कर्तव्य ही, सार्थक जीवन ध्येय,
सतत सहेजे प्राण सम, बाँटे कुल  में प्यार।।

◆ पूज्य धरोहर पूजते, देवालय सम  रूप।
बचा स्वयं संस्कृति को , छाँव बना लो धूप।
पीपल बरगद नीम को, ईश रूप में मान,
पूज रहे हैं आज भी, धरती के सब भूप।।

◆ सिन्धु सभ्यता आज तक , बनी धरोहर शुद्ध।
राम कृष्ण की भूमि भी, रक्षित करते बुद्ध।
सत्य मूल में है बसा , वही धरोहर ज्ञान,
संकल्पित शुभ भावना, प्रेम विजेता  क्रुद्ध।। 
*मधु शंखधर स्वतंत्र*
*प्रयागराज*✒️
*07.06.2021*

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