नूतन लाल साहू

स्वेच्छाचारिता

सब अपने में मगन
बस एक ही चस्का
ढेर सारे पैसे पाने का
और आगे बढ़ने की होड़
कभी न खत्म होने वाली मरीचिका
यही तो है स्वेच्छाचारिता
यह कैसी आजादी है
कोई किसी की
नही सुनता है
अच्छा क्यों नही लगता है
संयुक्त परिवार में रहना
अकेलापन में
गिली मिट्टी सा उपजते है
अनेक अभिलाषाएं
आकांक्षाएं
क्यों पसंद नही है
लोगों के बीच रहना
यही तो है स्वेच्छाचारिता
रिश्ता कोई भी हो
इतना फीका नहीं होता
आजकल के लोग
जितना समझते है
स्वार्थरत निजोन्मुख
अनजाने मॉद में
गिरगिट सा रंग बदलते है
यही तो है स्वेच्छाचारिता
सब अपने में मगन
बस एक ही चस्का
ढेर सारे पैसे पाने का
और आगे बढ़ने की होड़
कभी न खत्म होने वाली मरीचिका
यही तो है स्वेच्छाचारिता

नूतन लाल साहू

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