गुम न होइये (सजल)
गुम न होइये कभी अहसास चाहिये।
आपका आभास आसपास चाहिये।।
तोड़कर वादा-कसम मत और कहीं जा।
सम्बन्ध के निर्वाह की बस प्यास चाहिये।।
विश्वास धराधाम पर ईश्वर का भाव है।
विश्वास में शिव विंदु का अभ्यास चाहिये।।
मानव वही है लोक में जो नेक मना है।
मन में शुभ संकल्प का हरिदास चाहिये।।
सम्बन्ध को नकारना आसान बहुत है।
सम्बन्ध में विश्वास का सहवास चाहिये।।
सम्बन्ध तो बनते विगड़ते हैं जहान में।
सम्बन्ध के निर्वाह में हर श्वांस चाहिये।।
आशा किया है जिसने उसको न तोड़ दो।
दिल की कली को आपका आकाश चाहिये।।
उलझन नहीं स्वीकार है झेला इसे बहुत।
सुलझे हुए हर प्रश्न का इतिहास चाहिये।।
विश्व के मनचित्र पर भूगोल बहुत हैं।
एक मानचित्र मधुर न्यास चाहिये।।
रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
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