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1212-1122-1212-112
उधर भी इश्क़ के अब फूल मुस्कुराने लगे
मेरी ग़ज़ल वो अकेले में गुनगुनाने लगे
नज़र के तीर चलाये जो उसने छुप छुप कर
बला के तेज़ कलेजे पे वो निशाने लगे
चले भी आओ कि दिल बेक़रार होने लगा
फ़लक से चाँद सितारे भी अब तो जाने लगे
करीब इतना मेरे पास वो जो बैठ गये
हज़ारों दीप अँधेरे में जगमगाने लगे
उठा लिए थे तकल्लुफ़ को छोड़ पैमाने
क़सम दिला के हमें अपनी जब पिलाने लगे
बना दिया हमें आदी शराब का फिर वो
अँगूठा दूर से हँस हँस के अब दिखाने लगे
इसी लिहाज़ से कर ली शराब से तौबा
हमारे बच्चे भी अब आइना दिखाने लगे
ली जिनके वास्ते दुनिया से दुश्मनी *साग़र*
वो आज मेरी मुहब्बत को आज़माने लगे
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🖋️विनय साग़र जायसवाल
17/6/2021
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