डाॅ० निधि त्रिपाठी मिश्रा

*क्या पापा तेरी बिटिया दुलारी हम नहीं?* 

कैसी ये जग की रीत है कैसा ये विधान,
क्या परम्परा पर नित प्रति बलिहारी हम नहीं?  
होते ही जनम कहा क्यों? तुम्हारी हम नही ,
 *क्या पापा तेरी बिटिया दुलारी हम नहीं?*

कहाँ गयी वो चिन्ता, वो मेरी सब परवाह?
क्या तुमको रह गयी नही तनिक हमारी चाह?
दिल में ,यादों में आती तुम्हारी हम नही?
जिसका थे नाज उठाते वो प्यारी हम नहीं?

 *क्या पापा तेरी बिटिया दुलारी हम नहीं?* 

चेहरा तेरा खिल उठता था हमें देख कर, 
कहते कि  मेरी बिटिया है भारी बेटों पर, 
क्या अब वो अभिमान-मान तुम्हारी हम नहीं? 
होठों पर जो सजती थी किलकारी हम नहीं?

 *क्या पापा तेरी बिटिया दुलारी हम नहीं?* 

क्यूँ बाँटा तुमने हमको ,दो देहरी के बीच, 
हृदय नहीं समझा हमको क्या हम थे कोई चीज ,
विदा किया ऐसे जैसे ,तुम्हारी हम नहीं ,
नैहर हो या पीहर,किस पर वारी हम नहीं, 

 *क्या पापा तेरी बिटिया दुलारी हम नहीं...* 

कुछ ब्याह और थोडी़ सी पढा़ई की खातिर,
तैयारियाँ करते थे सुन्दर जीवन खातिर,
क्या होली-दिवाली खुशी त्यौहारी हम नहीं?
दो पाटों बिच पिस गयीं, क्या हारी हम नहीं?

 *क्या पापा तेरी बिटिया दुलारी हम नहीं?* 

किससे कहूँ वो बातें, जो कहती थी रूठ कर, 
रख लेती हूँ सारी बातें अब मन में मसोस कर, 
राज दिल आँखों से अब  बोल पाती हम नहीं,
रह गयी अब  खुशी औ गम तुम्हारी हम नहीं

 *क्या पापा तेरी बिटिया दुलारी हम नहीं?*
 
कब माँगा हमने हिस्सा ,माँगा कब सामान,
बेटों के जैसा दे दो हमको थोडा़ सा स्थान,
तेरे दिल का टुकडा़ है पराई हम नहीं,
नादान हैं, समझती दुनियादारी हम नहीं।

 *क्या पापा तेरी बिटिया दुलारी हम नहीं.....* 

ओ पापा! तेरी चिन्ता हमको सताती हैं ,
याद तुम्हारी आती आँखें भर आती हैं
पर बिन बुलाये मायके आ पाती हम नहीं,
दुखता है दिल न कहो कि तुम्हारी हम नहीं।

 *क्या पापा तेरी बिटिया दुलारी हम नहीं?* 

स्वरचित
डाॅ०निधि त्रिपाठी मिश्रा ,
अकबरपुर, अम्बेडकरनगर ।

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