नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

शीर्षक--विरह

रचना--

छोड़ गए जबसे जीवन विरान हुआ
विरह वेदना में गुलशन उजाड़ हुआ
पल पल खुशबू का मौसम मधुवन
मौसम कुछ उदास है।।
रिम झिम सावन की फुहार
तेरा शर्माना सावन की घाटाओं
जैसे जुल्फों में तेरे चाँद से चेहरे
का छुप जाना बस यादों का ही
साथ है ।।                              

खुशियां कब आयी कब चली गईं
जिंदगी खुशियों यादों का इंतज़ार है शायद फिर दुनियां में मेरे आ जाये बहार उम्मीदों का साथ है ।।
राह निहारु संदेशा भेजूं दिल की गहराई से दूं आवाज़ जीवन का विश्वास सांसों धड़कन का राज आ जा अब भी बची हुई कुछ आस हैं।।
बीराने सुने मन मे अब बसता
नही भगवान है तेरे जाने से भाग्य
समय काल भगवान भी रूठा।  
सुख बैभव सब कुछ है दुनियां में
मौसम भी मधुमास है तेरे ही ना
होने से मौसम कुछ उदास है।।
बारिस का पानी कागज़ की
कस्ती बचपन अंजाने का 
प्यार जाने कब एहसास हुआ
जीवन का व्यवहार है।।
तुमने भी जीवन खाब सजाए
जाने कितनी कसमे खाये कसम
तोड़ दिए सारे भूल गए प्यार के
सारे रीति रिवाज।।
दिल दुनियां दामन में क़िस्मत
खुशियां शीतल चाँद की चॉदनी
सावन की सर्द सुहानी हवाए  
वासंती बयार है तेरे ही ना होने से
मेरी दुनियां में दर्द बहुत मौसम
कुछ उदास।।

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश

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