शीर्षक कागज के फूल
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मन मोहक सुन्दर काया
अनुपम साज श्रृंगार
कागज के फूलों से कभी
आती नही है सुवास ।
छद्म रूप आवरण का
होता नही है असतित्व
जैसे सत्य के समक्ष असत्य
का होता नही कोई वजूद ।
सदगुण सत्कर्मों से सजता
काया का रूप स्वरूप
प्रेम सुवास से सुवासित
होता जीवन का हर रूप ।
त्याग दिखावा आगें बढ़ना
नीति यही है सिखलाती
पर सेवा उपकार भावना
जीवन सदा सजाती है।
प्रेम सुवास मधुर सुगंध से
जग का आँगन महकायें
बन उपवन का कुसुम
खार बीच भी मुसकाये।
मन्शा शुक्ला
अम्बिकापुर
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