नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

          -----काबा जाए कि काशी--------           


पंडित धर्मराज के तीन बेटे हिमाशु ,देवांशु ,प्रियांशु थे तीनो भाईयों में आपसी प्यार और तालमेल था पूरे गाँव वाले पंडित जी के बेटो के गुणों संस्कारो का बखान करते नहीं थकते पंडित जी के पास एक अदद झोपडी कि तरह घर था खेती बारी भी नहीं थी पंडित जी के  परिवार कि परिवरिस आकाश बृत्ति से चलती थी पंडित जी के यजमानो के दान दक्षिणा से परिवार का भरण पोषण होता ।पंडित के बच्चे भी पंडित जी के पुश्तैनी कार्य में हाथ बटाते पंडित जी ने अपने बेटों को बचपन से ही पांडित्य कर्म कि शिक्षा दी थी पंडित धर्मराज जी कि गृहस्थी बड़े आराम से गुजर रही थी।पंडित जी के गांव में लगभग सौ परिवार मुस्लिम समाज का रहता था गांव का माहौल बहुत ही सौहादरपूर्ण था हिन्दू मुस्लिम सभी एक दूसरे के सुख दुःख में सम्मिलित होते आपस में क़ोई धार्मिक या जातीय भेद भाव नहीं था गाँव को लोग अमन चैन भाई  चारे के नजीर के रूप में मानते ।पंडित जी का भी परिवार इस गाव कि शान था आर्थिक सम्पन्नता बहुत अधिक नहीं थी फिर भी पंडित जी के रसूख में क़ोई कमी नहीं थी।धीरे धीरे समय बीतता गया पंडित जी के तीनों बच्चे जवान हो चुके थे बड़े बेटे हिमांशु का विवाह हो गया और परिवार में एक सदस्य संख्या बढ़ गयी आमदनी सिमित थी और खर्ज बढ़ गया देवांशु को परिवार कि आर्थिक स्थिति का अंदाज़ा था सरकारी नौकरी तो मीलने वाली नहीं थी अतः उसने योग कि शिक्षा प्राप्त कि और पहले गाँव पर ही लोगो को इकठ्ठा कर योग शिविर लगाने लगा धीरे धीरे जब गांव वालों को योग से अनेको बीमारियों से लाभ हुआ और लोग स्वस्थ होने लगे तब हिमांशु की ख्याति एक दक्ष योग गुरु के रूप में होने लगी और आमदनी होने लगी  कुछ दिनों बाद हिमांशु को एक अवसर शहर में योग शिविर लगाने का प्राप्त हुआ संयोग से उस शिविर में पोलेंड के मिस्टर ट्राम अपने कुछ मित्रों के साथ आये थे वे सभी हिमासु के योग कला से काफी प्रभावित हुए और उन्होंने हिमासु को पोलैंड आने का निमंत्रण दे दिया ।हिमांशु लगभग एक वर्ष बाद पोलेंड गया वहाँ उसे पोलेंड वासियों ने हाथो हाथ उठा लिया हिमांशु वहां दिन रात तरक्की कि सीड़ी चड़ता जा रहा था फिर उसने अपनी पत्नी को भी वहां बुला लिया और पूर्ण रूप से पोलेंड वासी हो गया।पंडित जी का दूसरा बेटा दिव्यांसु मुंबई में अंतरराष्ट्रीय बड़ी कंपनी में इज़्ज़त और रसूक के पद पर कार्यरत था वैसे तो पंडित जी के दो बेटो ने पंडित जी का नाम बहुत रौशन किया लेकिन दोनों बेटे दूर थे और क़ोई ख़ास आर्थिक मदद नहीं करते पंडित जी ने सोचा कि तीसरे बेटे को कही नहीं जाने देंगे और उसे पुश्तैनी कार्य पांडित्य कर्म में लगा देते है हिमांशु और देवांशु तो दूर न चुके थे अब पंडित धर्म राज और उनकी पत्नी सत्या और तीसरा बेटा प्रियांसु तक परिवार सिमट गया था प्रियांशु यजमानो के बुलावे पर उनके मांगलिक कार्य संपन्न करता दिन धीरे धीरे गुजर रहे थे कि एक दिन प्रियांसु शाम को किसी यजमान के यहाँ से लौट रहा था रास्ते में देखा कि बहुत ही खूबसूरत खोडसी सड़क के किनारे कराह रही थी प्रियांशु उसके नजदीक पंहुचा तो देखा कि लड़की के सर से खून का रिसाव हो रहा है प्रियांशु जल्दी जल्दी उसे अपने कंधे पर लादा अपनी सायकिल वही छोड़ दी और लगभग दो किलोमीटर पैदल चल कर प्राथमिक स्वस्थ केंद्र मोती चक ले गया जहा ड़ॉ तौकीस ने उसका तुरंत उपचार प्रारम्भ किया और पूरी रात निगरानी में रखने को कहा प्रियांशु तो आफत में फंस गया क्योकि उसके माँ बाप परेशान होंगे मरता क्या न करता वह मन मार कर उस अनजान लड़की कि देखभाल कर रहा था रात के लगभग बारह बजे रात को उस लड़की को होश आया तब प्रियांशु ने पूछा तुम्हारा नाम क्या है तरन्नुम लड़की ने बताया प्रियांशु ने पूछा किस गाँव कि रहने वाली हो लड़की ने बताया बंगाई प्रियांशु ने कहा बगाई तो मेरा गाव भी है मगर मैंने तुम्हे कभी नहीं देखा लड़की ने बताया वह मुसलमान हूँ और खलील कि बेटी हूँ इधर पंडित धर्मराज और सत्या प्रियांशु के घर न आने के कारण चिंतित थे सुबह के पांच बजने वाले थे डा तौकिश ने प्रियांशु से कहा अब आप इसे ले जा सकते है फिर डा तौकीस ने कहा बैसे आपकी ये लड़की क्या लगाती है जोड़ी खुदा के करम से बहुत शानदार खूबसूरत है खुदा तुम दोनों को सलामत  रखे प्रियंशु बिना कुछ बोले डा तौकीस का धन्यबाद ज्ञापित किया और तरन्नुम को साथ लेकर प्राथमिक स्वतः केंद्र से बाहर निकाला सौभाग्य से एक तांगा बंगाई गाँव जा रहा था प्रियांशु ने तरन्नुम को उस पर बैठा दिया और किराया देता बोला क़ि इन्हें छोड़ देना जहाँ से ये आसानी से घर पहुँच सके।प्रियांशु पैदल चला और जहाँ पिछले शाम अपनी सायकिल छोड़ कर गया था वहां पंहुचा वहां उसकी सयकील सुरक्षित पडी थी सायकिल लिया और घर चल पड़ा थोड़ी देर बाद घर पहुंचा तब माँ सत्या और पिता धर्मराज ने विलम्ब का कारण पूछा प्रियांशु ने बड़ी ईमानदारी से पूरी घटना बता दिया ।पंडित धर्मराज ने पूछा मुसलमान कि लड़की को छुआ तू अपवित्र हो गया है जा जल्दी से स्नान करो मैं पंचगव्य बनाता हु जिससे तुम पवित्र हो सकोगे प्रियांशु ने स्नान किया और पञ्च गव्य वैदिक रीती स ग्रहण कर पवित्र हुआ।
 प्रियांशु इस घटना को भूल चुका था
 लेकिन तरन्नुम प्रियांशु को नहीं भूल पायी वह कोइ न कोई बहाना खोज लेती और प्रियांशु को छेड़ती प्रियांशु तरन्नुम से दूर भगता क्योकि पिता धर्मराज का डर उसका पीछा नहीं छोड़ रहा था एक बार पंचगव्य से शुद्ध होकर दुबारा अशुद्ध नहीं होना चाहता था तरन्नुम कि शोखियों शरारते उसके मन को झकझोरती फिर भी वह दूरी बनाये रखता एक दिन तरन्नुम ने अपनी शरारतो में कह ही दिया पोंगा पंडित यह  बात प्रियांशु को ज्यादा संजीदा कर गयी अब वह तरन्नुम के शरारतो को निमंत्रित करता इसी तरह धीरे धीरे दोनों में प्यार हो गया और दोनों के प्यार कि बात गांव में घर  घर चर्चा का विषय बन गयी।जब इसकी जानकारी दोनों के परिवारो में हुई तो पूरे गाँव का माहौल तनाव पूर्ण हो गया और अमन प्यार का गांव नफ़रत के जंग का मैदान बन गया।
गाँव में एक तरफ हिन्दू और दूसरी तरफ मुसलमान आपस में कुछ भी कर गुजरने को तैयार थे किन्तु कुछ हिन्दू विद्वानों और कुछ मुस्लिम विद्वानों ने सर्व सम्मति से यह निर्णय दिया कि प्रियांशु और तरन्नुम गांव छोड़कर चले जाय क्योकि पंडित धर्मराज के यजमानो का कहना था कि आपका बेटा धर्म भ्रष्ठ हो चुका है और उसे ब्राह्मण समाज में रहने का कोइ हक नहीं है उधर मुस्लिम समाज ने कहा तरन्नुम ने एक काफ़िर से मोहब्बत करने कि जरुरत कि है अतः उसे इस्लाम में रहने का हक नहीं है।
इसी बीच तरन्नुम ने प्रियांशु का हाथ पकड़ा और दोनों सम्प्रदाय के मध्य जाकर खड़ी शेरनी कि तरह दहाड़ मारती उसने अपने हाथ और प्रियांशु के हाथ कि हथेली पर चाक़ू से गहरा घाव बना दिया दोनों के हथेलियों से खून बहने लगा तब तरन्नुम ने दोनों सम्प्रदायो के लोगो से सवाल किया अब बताओ किसका खून इस्लाम का है किसका खून हिन्दू का है जब अल्लाह खुदा भगवान् ने सिर्फ इंसान बनाया तब तुम लोग कौमो और फिरको में बाँट कर नफरत क्यों फैलाते हो ।दोनों सम्प्रदाय के लोग आवाक रह गए फिर तरन्नुम ने ही सवाल किया बताओ हम दोनों कहाँ जाये काबा या काशी।
 दोनों ने एक दूसरे का हाथ थामा और गांव छोड़कर चले गए दोनों और मुम्बई पहुच गए तरन्नुम कपड़ो कि सिलाई करती और प्रियांशु मजदूरी करता खली समय में दोनों पड़ते कहते है न कि जब सारे रास्ते बंद हो जाते है तो नई मंजिल कि उड़ान का रास्ता खुल जाता है करीब दस सालो के कठोर परिश्रम से तरन्नुम का चयन भारतीय प्रसाशनिक  सेवा में हुआ और प्रियांशु का भारतीय पुलिस सेवा में दोनों कि नियुक्ति उनके राज्य में ही  हुई ।आज उनके गॉव के हिन्दू मुस्लिम दोनों संप्रदाय के लोग फक्र से कहते है तरन्नुम और प्रियांशु उनके गाव के अभिमान है।

कहानीकार- नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

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-----बिचित्र प्राणी बिशन-----


किशन सुबह ब्रह्म मुहूर्त की बेला में उठा और शाम के दिये बापू के आदेशों को याद कर बेचैन हो गया बापू ने शाम को किशन को समझाते हुए कहा था बेटा हम लोग गरीब है कोई रोजगार तो है नही सिर्फ थोड़ी बहुत खेती है जिसके कारण दो वक्त की रोटी मिल जाती है और खेती मेहनत श्रद्धा की कर्म पूजा मांगती है ।तुम्हारे ऊपर दोहरी जिम्मेदारी है एक तो एकलौते संतान होने के कारण खेती बारी में मेरा सहयोग करना और दूसरा मनोयोग से पढ़ना जिससे कि जो अभाव परेशानी मुझे अपने जीवन मे झेलनी पड़ी वह तुम्हे न उठानी पड़े मेरे पिता जी यानी तुम्हारे दादा जी ने मुझे अच्छी शिक्षा देने की अपनी क्षमता में पूरी कोशिश की मगर आठ जमात से अधिक  नही पढा सके जिसका उन्हें मरते दम तक मलाल था। मैं मजबूरी में पढ़ नही सका इसका मलाल मुझे मरते दम तक रहेगा किशन शाम को दी बापू  की नसीहत से खासा बैचैन था क्योंकि खेत मे प्याज की रोपाई  होनी थी और अभी खेत पूरी तरह तैयार नही था ।जल्दी जल्दी किशन उठा दैनिक क्रिया से निबृत्त होकर माँ से गुड़ मांगा और गुड़ पानी पीकर फावड़ा लेकर खेत की तरफ चल दिया खेत पहुंच कर खेत की गुड़ाई का कार्य करने लगा और खेत के खास को निकाल एकत्र करता   जिसे अपनी गाय के लिए ले जाना था किशन अपने  कार्य को बड़ी एकाग्रता के साथ कर रहा था सुबह के लगभग साढ़े चार ही बजे थे गांव के एक्का दुक्का महिलाएं बाहर जाती दिख जाती कभी कभार गांव के अधेड़ बुजुर्ग भी दिखाई पड़ते किशन को आठ बजे घर पहुचकर स्कूल जाने की तैयारी करनी थी अतः वह बिना समय गंवाए पूरी तल्लीनता से अपने कार्य मे  मशगूल था तभी उसके सामने एक अजीब सा प्राणी नज़र आया किशन बिना ध्यान दिए अपना कार्य करता चला जा रहा था आज सोमवार था और तीन दिन बाद उसे बृहस्पतिवार को खेत मे प्याज़ के फसल की रोपाई करनी थी एकाएक वह अजीब सा दिखने  वाला प्राणि किशन के बिल्कुल सामने आ गया किशन खेत की गुड़ाई का कार्य रोक कर उस अजनवी की तरफ मुखातिब हुआ उसने देखा कि उस अजीब प्राणी की बनावट बड़ी विचित्र थी वह पृथ्वी के इंसानों से बिल्कुल भिन्न तो था ही किसी जानवर से भी मेल नही खा रहा था कुछ देर के लिये किशन सहमा और डरा भी मगर उस अजीब से दिखने वाले प्राणी का व्यवहार दोस्ताना और प्यार भरा था अतः किशन ने उससे पूछा क्यो भाई आप कौन है और कहां के बिचित्र प्राणी है यहाँ पृथ्वी पर क्यो भटक रहे है किशन के इतने सारे प्रश्नों का मतलव वह विचित्र प्राणी नही समझ पा रहा था अतः उसने आकाश की तरफ इशारा करते बताया कि मैं वहां से आया हूँ किशन को लगा कि वह विचित्र प्राणी कह रहा हो कि वह भगवान के यहां से आया है किशन को उस बिचित्र से दिखने वाले प्राणी का व्यवहार बहुत अपनापन सा लग रहा था अतः किशन उस बिचित्र से दिखने वाले प्राणी से अपने दोस्त शुभचिंतक की तरह बात इशारों में करने लगा कुछ इशारों को वह संमझ पाता और कुछ इशारों को नही संमझ पाता यही दशा किशन की थी वह उस बिचित्र प्राणी के कुछ इशारों को संमझ पाता और कुछ को नही किशन और उस बिचित्र प्राणी के इशारों इशारों की बातों में सुबह कब पौ फ़टी सूर्योदय हो गया पता नही चला सुबह के लगभग आठ बजने ही वाले थे किशन खेत के गुड़ाई  का कार्य के उस दिन के निर्धारित लक्ष्य से बहुत पीछे उस बिचित्र प्राणी के चक्कर मे रह गया था। मगर उस बिचित्र सा दिखने वाले प्राणी का अपनापन प्यार उसके मन मे लक्ष्य अधूरा रहने के मलाल को जन्म नही दे रहा था किशन को घर लौटना था वह असमंजस में था कि यदि उस विचीत्र से दिखने वाले प्राणी को अकेला छोड़ दिया तो गांव वाले उसे मार डालेंगे इशारों इशारों में उस बिचित्र से दिखने वाले प्राणी ने भी आशंका जाताई थी एकाएक किशन ने निश्चय किया कि वह उस बिचित्र सा दिखने वाले प्राणी को अपने साथ घर ले जाएगा और वह उस बिचित्र से दिखने वाले प्राणी को लेकर घर की ओर चल दिया घर चलने से पहले उसने  उसे अपने अंगौछे से ढक दिया रास्ते मे गांव वाले पूछते किशन ये क्या है किशन कहता कुछ नही यह मेरा दोस्त है किशन उस बिचित्र प्राणी को लेकर घर पहुंचा तो किशन के बापू अरदास बोले बेटा ये क्या है किशन ने बड़ी सहजता से जबाव दिया यह मेरा दोस्त  है किशन ने ज्यो ही उस बिचित्र प्राणी से अपना अंगौछे को हटाया किशन के बापू अरदास दंग रह गए बोले बेटा यह तुम्हारा दोस्त कैसे हो सकता है यह तो इस पृथ्वी के ना तो किसी जीव जंतु जैसा है ना ही आदमी जैसा तभी उस अजीब प्राणी ने बड़े ही आदर से झुक कर किशन के पिता अरदास के पैर छुए अरदास आश्चर्य से भौचक्के रह गए और उनका क्रोध समाप्त हो गया उन्होंने किशन से पूछा बेटा यह तुम्हे कहाँ मिला किशन ने अपने बापू से उस बिचित्र प्राणी से मुलाक़ात का पूरा व्योरा बताया और बोला बापू हम तो अभी स्कूल चले जायेंगे इस बिचित्र प्राणी का ख्याल रखना  और गांव वालों की नज़र  से बचाना अरदास बोले ठिक है बेटा लेकिन अपनी अम्मा को इससे मिला दो और उन्हें बता दो वह इसका बेहतर ख्याल रखेंगी किशन उस बिचित्र सा दिखने वाले प्राणी को लेकर ज्यो ही माँ मैना के पास गया उस बिचित्र प्राणी ने झट जा माँ मैन के पैर छूकर उनकी गोद मे बैठ गया कुछ देर के लिये तो माँ मैना डर के मारे सहम गई मगर उस बिचित्र प्राणी का प्यार भरा व्यवहार देखकर निडर होकर किशन से पूछा ये  क्या है बेटा किशन बोला माँ यह मेरा दोस्त  है जैसे माँ तू मेरा ख्याल रखती हो ठीक वैसा ही यह भी तुम्हारा खयाल रखेगा हमे स्कूल  जाना है देखना इस पर गांव वालों की नज़र ना पड़े माँ मैना बोली बेटा ठीक है तुम निश्चिन्त होकर स्कूल जाओ यह मेरे पास उसी प्रकार रहेगा जिस प्रकार तुम रहते हो किशन तैयार होकर स्कूल चला गया इधर वह बिचित्र सा दिखने वाला प्राणि माँ मैना के साथ घर पर माँ के हर काम मे हाथ बटाने लगा माँ बर्तन मज़ती वह शुरुआत ही  करती मगर सारा बर्तन थो देता कपड़ा साफ करना हो या खाना बनाना सभी कामो में माँ की आगे बढकर हाथ बटाता मैना को तो एक ही दिन में लगने लगा कि बिचित्र सा प्राणी उनका ही छोटा बेटा है।
एक ही दिन में बिचित्र सा दिखने वाला  प्राणी किशन के माँ बापू का दुलारा बन गया उसका व्यवहार इसांनो से अधिक संवेदनशील और व्यवहारिक था उसके  व्यवहार आचरण में औपचारिकता बिल्कुल नही थी  आभास ही नही होता था कि बिचित्र सा दिखने वाला प्राणी किसी शिष्ट सभ्य समाज से ताल्लुक नही रखता सिर्फ फर्क था तो मात्र इतना कि वह कार्य सभी इंसानों वाला करता मगर कुछ भी खाता पिता नही सिर्फ वह चूल्हे की आंच के सामने कुछ देर बैठ कर ही तरोताज़ा ताकत ऊर्जा से भरपूर हो जाता उसके आचरण व्यवहार को देख किशन के पिता अरदास पत्नी मैन से बोले आज जब इंसानों के समाज  द्वेष ,घृणा, लालच, स्वार्थ में अंधे एक दूसरे की टांग खिंचते कभी कभी एक दूसरे के खून के प्यासे हो नैतिक मूल्यों मर्यादाओं का परिहास उड़ाते है ऐसे में यह बिचित्र सा दिखने वाला प्राणी पृथ्वी वासी मनुष्यों के लिये एक सिख देता मार्गदर्शक  है ।निश्चय ही मेरे किशन ने इस जन्म या पूर्व जन्म में कुछ अच्छे कर्म किये है जिसके कारण किशन की मुलाकात इस प्राणी से हुई मैना  भावुक होकर बोली जी मैं तो चाहती हूँ कि यह हमारे घर हमारा दूसरा बेटा बनकर रहे लेकिन पता नही क्यो डर लगता है कि कही यह हमें छोड़ कर चला न जाये जिसने सुबह से शाम केवल एक दिन में ही मर्यादा प्रेम और संस्कारों के भाव मे ऐसा बांध लिया है कि मुक्त होना कठिन है।शाम होने को आई किशन भी स्कूल से आ चुका था किशन के आते ही वह बिचित्र सा प्राणि किशन के साथ दूसरे भाई की तरह हो लिया किशन को इस बात पर बहुत आश्चर्य था कि अम्मा बापू पर इस अबोध अंजान बिचित्र से दिखने वाले प्राणी ने  कौन सा जादू कर दिया है कि वे लोग उससे ज्यादा प्यार और सम्मान उस प्राणी का कर रहे है रात को जब किशन जब पढ़ने बैठा तब वह बिचित्र सा दिखने वाला प्राणी भी किशन के साथ बैठा और किशन को उसकी पढाई में सहयोग करता उलझे प्रश्नों का उत्तर बताता पढाई समाप्त करने के बाद किशन खाना खा कर सोने के लिये गया तो वह बिचित्र प्राणी भी साथ हो लिया सुबह किशन उठा तो वह विचित्र प्राणी भी साथ उठा वह कब सोया यह किशन को  मालूम नही हो सका किशन जल्दी से दैनिक क्रिया से निबृत्त होकर गुड़ पानी पी कर खेत की गुड़ाई करने चल दिया साथ साथ वह विचित से प्राणी भी साथ चल पड़ा
जब किशन खेत की गुड़ाई कर रहा था  तब विचित्र सा  दिखने वाले प्राणी ने फावड़ा किशन के हाथ से ले लिया और जैसे जैसे किशन खेत की गुड़ाई कर रहा था वह करने लगा और लगभग तीन घंटे में पूरे खेत की गुड़ाई कर दी किशन को बड़ा आश्चर्य हुआ और उसने उस विचित सा दिखने वाले प्राणी जिसकी लम्बाई साढ़े तीन फीट और बनावट अजीब सी थी को गले लगा लिया औऱ भावुक होकर बोला कि तुम अब विचित्र प्राणी नही तुम मेरे भाई बिशन हो वह विचित्र प्राणि यानी बिशन अब पृथ्वी वासियों की भाषा समझने लगा था और बोलने की कोशिश करता किशन और बिशन दोनों साथ घर की तरफ चल दिये घर पहुंचकर बापू अरदास को किशन ने बताया कि विचित्र प्राणि  को सभी लोग बिशन नाम से बुलाएंगे अरदास और मैना बिशन के आने से किशन के साथ बहुत खुश थे परिवार में एक ऐसा सदस्य जुड़ गया था जो सबका ख्याल रखता था उसकी अपनी जरूरते बहुत सीमित थी पूरे परिवार में उल्लास उत्साह और खुशी का माहौल बिशन के आने से बन गया था।बिशन को आये दो दिन ही हुये थे कि मेंहदी पुर गांव में कानो कान खुसर फुसर चल  रही थी कि अरदास के यहॉ एक बहुत खास और बिचित्र प्राणी पता नही कहां से आया  है किशन स्कूल जाते समय बापू से बोला बापू आज गांव के कुछ लोंगो ने बिशन को खेत मे मेरे साथ देखा है सम्भव है मेरे स्कूल जाने के बाद गांव के लोग आपसे बिशन के विषय मे जानकारी चाहे मगर बापू मेरी कसम आप किसी को कुछ मत बताना नही तो सब मिलकर हमारे बिशन को हमलोंगो से दूर कर देंगे अरदास बोले बेटा तुम निश्चित रहो मेरे होते हुये बिशन को कोई हमसे अलग नही कर सकता किशन निश्चिन्त होकर स्कूल चला गया जैसी की आशंका थी किशन के स्कूल जाने के कुछ ही देर बाद गांव वाले गांव के मुखिया मुनेश्वर के साथ अरदास के दरवाजे आ धमके अरदास ने जब देखा कि गांव वाले उनके दरवाजे आ धमके उनको अंदाजा तो था ही उन्होंने अपनी पत्नी मैना को हिदायत दी कि किसी भी सूरत में बिशन बाहर ना निकले अपने दरवाजे पर गांव वालों को देख कर अरदास ने सबको गुड़ का शर्बत पिलाया और आदर सम्मान से बैठाया और पूछा आप लोग हमारे दरवाजे की शोभा बढ़ाने आये हम आप लोंगो की क्या सेवा करे प्रधान मुनेश्वर बोले अरदास जी सुना है आपके घर कोई बिचित्र सा दिखने वाला प्राणी आया है गांव वालों की मंशा है कि आप उंसे गांव वालों से मिलवाये परिचय करवाए अरदास  बोला प्रधान जी एक तो हमारे यहां कोई विचित्र प्राणि नही रहता जो रहता है वह मेरा दूसरा बेटा बिशन है जो पंद्रह साल पहले विकृत पैदा  हुआ था सो हमने उसे समाज के तानों और परिहास से बचाने के लिये छिपा के रखा मगर आज मैंना उंसे लेकर बाहर गयी है उसका इलाज झाड़ फूँक करवाने क्योकि उसकी तबीयत कुछ गड़बड़ लग रही थी  ज्यो बिशन स्वस्थ होगा पूरे गांव वालों से उसका परिचय करवा देंगे अरदास ने इतना सटीक और खूबसूरत बहाना बनाया की गांव वाले निरुत्तर हो गए  और  चले गए मगर गांव वालों के मन मे दुविधा बनी रही कि अरदास झूठ क्यो बोल रहे है अब गांव में हर घर चर्चा होने लगी कि अरदास की बीबी मैना ने ऐसा बालक जना है कि जो पृथ्वी के किसी प्राणि से मेल नही खाता धीरे धीरे यह बात आग की तरह पूरे इलाके जनपद में फैल गयी हर दिन अरदास के दरवाजे पर सुबह से शाम हज़ारों लोंगो उस बिचित्र संतान को देखने की जिद करते मगर किशन उंसे लेकर कभी इधर कभी उधर छिपता फिरता इसी चक्कर मे उसका स्कूल जाना बंद हो गया बात फैलते फैलते स्थानीय पुलिस और  जिलाधिकारी तक पहुंच गयी जिलाधिकारी सुबोध मुखर्जी मीडिया पोलिस और पूरे जनपद के संभ्रांत लोंगो के साथ साथ चिकित्सको और दिल्ली से कुछ खास वैज्ञानिकों की एक टीम बनाकर अरदास के दरवाजे मेहंदी पुर गांव पहुंचे अरदास इतने बड़े बड़े हाकिम और पुलिस को देखकर हैरत और भय में टूट गया बोला हाकिम बिशन जो मेरे बेटे के समान है उंसे मैं आपलोगों के समक्ष तभी प्रस्तुत कर पाऊंगा जब आप लोग यह लिखित आश्वासन दे कि आप लोग  द्वारा उसका कोई नुकसान नही किया जाएगा और उसे हमारे  परिवार से अलग नही किया जाएगा  काफी ना नुकुर करने के बाद पूरे प्रशासनिक अमले ने विचार विमर्श करके इस निष्कर्ष पर पहुंची की अरदास जो कह रहा है उंसे लिख कर देकर आश्वस्त करने में कोई हर्जा नही है  तुरंत जिलाधिकारी सुबोध मुकर्जी ने लिखित आश्वाशन वैसा ही दे दिया जैसा अरदास चाहते थे अब अरदास अपने घर के अंदर गए और मैना  के साथ बिशन किशन को साथ लेकर बाहर आये बिशन मैना की गोद मे उसी प्रकार बैठा था जैसे कोई बेटा अपनी माँ की गोद मे बैठता है जब जिलाधिकारी और उनकी टीम जिसमें बैज्ञानिक चिकित्सक और इलाके के संभ्रांत लोग थे के आश्चर्य का कोई ठिकाना न रहा क्योकि अरदास जिसे अपना विकृत दूसरा बेटा कह रहे थे वास्तव मे वह परग्रही प्राणी एलियन था जो किसी कारण भटक कर अरदास के परिवार को मिल गया था वैज्ञानिकों और डॉक्टरों के लिये शोध खोज का विषय था जिसके लिये उंसे साथ ले जाना आवश्यक था मगर जिला अधिकारी ने लिखित आश्वासन दे रखा था कि उसे अरदास के परिवार से अलग नही किया जा सकता है। अतः सभी मन मसोश कर चल दिये ।
अब प्रतिदिन अरदास के दरवाजे पर सुबह पूरे प्रदेश और जनपद के सुदूर इलाको के लोंगो की भीड़ लग जाती टी वी चैनल्स अखबार वालो के लिये मसालेदार खबर थी जिससे उनके चैनल्स और अखबार की स्वीकृति और रेटिंग बढ़ रही थी आने वाले लोंग और चैनल्स अखबार वालो ने जमकर अरदास के परिवार वालो पर पैसे की बरसात की अरदास ने पच्चीस एकड़ का फार्महाउस खरीद लिया और शानदार हवेली बनवा की बिशन को आये लगभग एक वर्ष पूरे हो चुके थे लेकिन अरदास के दरवाजे पर भीड़ का तमाशा कम होने का नाम ही नही ले रहा था प्रतिदिन भीड़ बढ़ती ही जा रही थी इस बात की खबर सबको थी अब कुछ बाहुबलियों की निगाह अरदास के कमाई पर पड़ी और उन लोंगो ने अरदास को आदेश दिया कि बिशन को उसके हवाले कर दे उधर प्रदेश औऱ देश की सरकारें बिशन को अपने कब्जे में लेकर शोध कार्य करना चाहती थी अरदास पर चौतरफा दबाव था देश की सरकार ने एक प्रतिनिधिमंडल बाकायदे राज्य सरकार की सहमति से बिशन को लाने के लिये भेजा प्रतिनिधि मंडल अरदास के घर बिशन को लेने पहुंचा अरदास की संमझ में कुछ भी नही आ रहा था कि वह अपने जिगर के टुकड़े जैसे एलियन बिशन को सौंपे या नही अन्त  में अरदास ने फैसला किया कि वह किसी भी सूरत में बिशन को किसी को नही सौंपेगा सरकारी प्रतिनिधिओ ने बिशन को सौंपने के एवज में अच्छी खासी रकम अरदास को देने की पेशकश की वार्तालाप में लगभग एक सप्ताह का समय बीत चुका था मगर कोई हल निकलता नही दिख रहा था ठिक आठवें दिन अरदास के दरवाजे पर भीड़ एकत्र थी सरकार के प्रतिनिधि भी मौजूद थे उसी समय एलीयन्स का एक समूह वहां उतरा जिसे देखते ही बिशन अरदास को उनकी तरफ इशारा किया अरदास और मैना और किशन बिशन को लेकर भीड़ को चीरते हुए एलियन्स के समूह के पास गए ज्यो ही वे उनके समूह के पास गए उनमें से एक मैना के पास आया जिसकी गोद मे बिशन बेटे की तरह बैठा था उसने बिशन को अपनी तरफ आने का इशारा किया अरदास ने मैना से कहा यह बेटा हम लोंगो के लिये इतने ही दिनों के लिये ही अपनी माँ परिवार से बिछड़ कर आया था तुम एक माँ हो अब तुम्हारी जिम्मेदारी है कि बिशन को उसके परिवार माँ के हवाले कर दो मैना के आंख से आंसु के धार फुट पड़े किशन और अरदास भी रोने लगें वहां एकत्र भीड़ यह करुण दृश्य देखकर गमगीन हो गई मैना ने भारी मन से बिशन को ज्यो ही अपनी गोद से छोड़ा सारे एलियन्स खुशी खुशी बिशन को लेकर आकाश की ओर उड़ चले सभी यह दृश्य देखकर हतप्रद रह गए ।।

कहानीकार --नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश

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