अशोक छाबरा

*💞यादे....बहती है*
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  बन जाती झरमुटे
फूलों के गुंचो
की तरह!

बिखरती है
छिटक कर पेड़ों से
सूखी पत्तियों की तरह!

 मिल जाती है किताबों में
धीमी सी महक लिए
सूखे गुलाबों की तरह!

तैर जाती है ख्वाब में
ताल में गिरे
पके पात की तरह!

उड़ने लगती है
गुजरते हुए
रेगिस्ता की
गरम हवाओं में
पल्लू की तरह!

ठहर जाती है 
यादें कभी
झील के ठंडे जल पर
बर्फ की परत सी!

कभी बुढापे के
मेहंदी रंगे बालों की
जमी हुई महक सी!

चलती है साथ
कभी अंगुली पकड़कर
नन्हे मासूम बच्चे सी!

उमड़ आती है भांवरो में,
सीख में,बाबुल से गले
लगते हुए चिड़कली सी!

यादें चलती साथ ही
पीया के घर
माँ की सीखड़ली सी!

 उमड़-उमड़ आती यादे
अपने किसी प्रिय को 
जाते महाप्रयाण पर
 बनकर आँसूओ की लड़ी सी!

यादें..प्यारी यादे
खट्टी मीठी कड़वी कसैली सी
कभी झगड़ती 
कभी उंडेलते
स्नेह की सहेली सी!

यादें चलती उम्रभर
 हमराज हमराह सी
*इस उम्र से उस उम्र तक!*
*यादें और सिर्फ यादें!!*

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