सुधीर श्रीवास्तव

हाइकु
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राहत
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बेटी विदा हो
अपने घर गई
राहत मिला।
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औपचारिकता
बाढ़ की विभीषिका
राहत कार्य।
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बेटी तो है न
फिर क्यों करें शोक
नाम चलेगा।
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दाह संस्कार
बेटी करेगी तो भी
मोक्ष मिलेगा।
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सेवानिवृत्त
होकर घर आया
अब राहत।
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भरोसा रखो
खुद पर अपने
राहत पाओ।
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कौन जानता
कल तक क्या होगा
आज राहत।
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मंत्री के घर
गरीबों का राहत
बंटता कैसे।
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राहत पाओ
मंत्री से तुम सब
गुलामी करो।
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बेटे बहू तो
अपने में मस्त हैं
हमें राहत।
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अपनी चिंता
आप खुद कीजिए
राहत पायें।
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राहत पाना
राहत के लिए भी
राहत ही है।
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बेटी का बाप
राहते अहसास
न गमे साथ।
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◆ सुधीर श्रीवास्तव
      गोण्डा, उ.प्र.
   8115285921
©मौलिक, स्वरचित

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